हम भोले भाले बच्चें हैं
बिल्कुल सीधे सच्चें हैं
थोड़ी सी नादानी रखतें
खूब शरारत हम करते
समय पर हम जातें स्कूल
कभी बस्ता वहां जाते भूल
घर पर आकर उस दिन पिटतें
थोड़ी देर में सब जातें भूल
मन लगाकर हम हैं पढ़ते
उत्तर सब प्रश्नों के दे देते
कभी नहीं अगर नहीं बतातें
हाथों पर दो डंडे लग जाते
सीधी सादी अपनी बोली
कानों में जैसे मिश्री घोली
दुनिया के तानों बानों से
हम तो सदा अंजान रहते
पतंग देखकर पीछे भागें
कटी पतंग को लेकर आते
फिर छत पर वह पतंग उड़ाते
धमाचौकड़ी हम खूब मचाते
पेड़ों पर कभी हम चढ़कर
कच्चें आम तोड़कर खाते
पकडे जाने पर भोले बनकर
कान पकडऊठक बैठक लगाते
सबसे निराली दुनिया अपनी
मन में तनिक भी मैल ना आए
अब लड़े, जल्दी मान जाए
प्रेम सुधा रस हम बरसाए
अलका शर्मा
शामली, उत्तर प्रदेश