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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

फिर से आना

 वात्सल्य के बीज पिरोती हूँ

तुम्हारे सपनों को अपने नैनों में समेटी हूँ

                  ओ ! मेरी गुड़िया मेरे घर फिर से आना

                  अपनी अधूरी किलकारियां सुनाना

अपनी नन्ही हथेलियों को धर मेरे हाथों में

तुम फिर से घर आंगन का दौड़ा लगाना

                  आँखमिचौली करती मेरी खिलखिलाती सी बच्ची

                  जिसमे उकेरी थी मैंने कई सपनों की सुंदर हस्ती

अरे सुन मेरी गुड़ियाँ ! अबकी आना तो

हाथों में तलवार पकड़कर लाना

                          नैनों में आग भर कर आना

                          हृदय में अपार प्रेम, विश्वास, शक्ति श्रृंगार कर आना

ताकि निर्भया की चित्कार फिर से सुनाई ना दे

उसके आबरू की फिर से कोई दुहाई ना दे

                         पुकार है हर पिता से,गुहार है हर भाई से

                         विनती है हर प्रेमी से ,सम्वेदना है हर स्त्री जाति से

सुनवाई है हर मित्रता से ,ललकार है स्वाभिमान से

छड़ प्रति छड़ का अब दिग्गज़ स्वतंत्र आगाज़ हो

                          समाज मे हथेली मरोड़ने की अब ना कोई आवाज़ हो

                          उसके सपनों के अग्निदाह का अब ना किसी मे अंदाज़ हो

आओ सब मिलकर उठे और आगे बढ़े

समाज से बुराई मिटाने का कुछ प्रयत्न तो करे

                          वात्सल्य के बीज पिरोती हूँ

                          तुम्हारे सपनों को अपने नैनों में समेटी हूँ ।

 

                   सुजाता सिंह  

भदोही, उत्तर प्रदेश   


 

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