कमजोर नहीं हूं मैं,
चमकती दामिनी भी हूं,
केवल, घटा घनघोर नहीं हूं मैं।
मां बनके तुझको पाला,
फिर पत्नी बन संभाला,
अन्तर्मन में अगर तू झांके
बता,किस ओर नहीं हूं मै।
अबला समझ मुझको.....
खुशियां ना मुझसे बांटे
करे साझा सब जगत से
विपदा की निशाओं की
क्या, भोर नहीं हूं मै?
अबला ना समझ......
सीमा पर अटल पर्वत सी,
भयभीत नहीं हूं मैं,
हारा है अगर शत्रु तो,
क्या, जीत नहीं हूं मैं?
अबला ना समझ.......
सृजन में,पालन में, सदियों से साथ तेरे
गृहस्थी के इस गगन का,
एक छोर अगर तुम हो,
तो क्या,दूजा छोर नहीं हूं मै?
अबला ना समझ मुझको,
कमजोर नहीं हूं मै।
-उमा
शामली, उत्तर प्रदेश