भारत भूमि में जो सुख है।
सारे जग में कहीं नहीं।।
आकर्षित कर सके जो हमको ।
ऐसा प्यारा भूमंडल कहीं नहीं।।
तेरी सेवा में रत होकर।
कांटो का पथ भी प्यारा।।
कस्तूरी बन बसी ह्रदय में।
दे दो मां ज्ञान का उजियारा।।
झूठे जग की मृगतृष्णाए।
भूले बिसरे जीवन में कभी नहीं।।
भारत भूमि में जो सुख है।
सारे जग में कहीं नहीं।।
तेरे पथ की धूल तप्त।
अमृत घट सी शीतल है।।
सागर की लहरों की छाती।
ध्येय मार्ग का संबल है।।
तेरा क्षितिज असीम निरंतर।
लगे किनारे कहीं नहीं।।
भारत भूमि में जो सुख है।
सारे जग में कहीं नहीं।।
अपने ऊपर विश्वास रखें हम।
ऐसी श्रद्धा का वर दो।।
सील शौर्य से सिंचित कर दो।।
तेरे वीर पुत्र ,अनुचर रहें हम।
सर को झुकाएं कहीं नहीं।।
भारत भूमि में जो सुख है।
सारे जग में कहीं नहीं।।
अक्षय बल दो, युक्ति बुद्धि दो।
दूरदर्शिता का शुभ दर्शन।।
कौशल दो व्यवहार मार्ग में।
धैर्य शौर्य उत्साह चिंतन।।
वैभव की चोटी तक निष्ठा।
पथ में हारे कभी नहीं।।
भारत भूमि में जो सुख है।
सारे जग में कहीं नहीं।।
कृष्ण कांत तिवारी