बचपन जैसा सबका होता है मीना का भी था | वो बच्चों के साथ खेलती पर परिवार के दूसरे बच्चों को देख कर उसकी भी लालसा होती थी कि सब उसे प्यार करें और हर वह चीज उसके भी पास हो जो परिवार के अन्य बच्चों के पास है |
पर मीना को तो भरपेट भोजन ही नहीं मिल पाता था और अच्छी चीजें कहाँ से मिलतीं | उसे लगा कि उसके पास तो अच्छे कपड़े भी नहीं हैं सब बच्चे कितने अच्छे अच्छे कपड़े पहनते हैं तो एक दिन उसने अपनी ताई से बोला कि ताई मुझे भी एक जाली वाला दुपट्टा दिला दो जैसा किरन के पास है किरन मीना की ताई की बेटी थी | ताई ने कहा मीना तू ऐसा कर शाम के समय घर का कुछ कुछ काम कर दिया कर कुछेक समय एक महीना फिर मैं तुझे तेरी पसंद का जाली वाला दुपट्टा दिला दूँगी | बस फिर क्या था मीना ने ख़ुश होकर हाँ कर दिया काम के लिए क्योंकि उसकी तो सुन्दर दुपट्टे की इच्छा जो पूरी हो रही थी |
वो झाड़ू लगाती ,सब्जी काटती ,चाय बनाती मीना चाय जानबूझकर थोड़ी ज्यादा बना लेती जिससे बच जाने पर मीना को मिल जाए | वो किस्मत की मारी कुछ समझती भी नहीं थी इंतजार करती थी कि कब शाम हो तो उसे चाय मिले क्योंकि उसके यहाँ तो दूध आता नहीं था फिर चाय कहाँ से मिलती जो रूखा सूखा मिलता था उसी से पेट भरती थी ऐसा ही था उसका गरीबी का जीवन |
पता है उस दुपट्टे की कीमत उस समय क्या थी मात्र तीन रुपये जिसके लिए उसे एक माह तक लगातार काम करना पड़ा |
यदि चाहतीं तो उसकी ताई उसे ऐसे ही दिला सकती थीं अगर उसे भी किरन की तरह अपनी बच्ची समझती तो लेकिन उन्होंने भी उसकी मजबूरी का फायदा उठाया | वो तो नासमझ थी _अगर मीना के पिता के पास पैसे होते तो उसे भी वह सब कुछ मिलता जो अन्य दूसरे बच्चो को मिलता था और मीना को भी वह नहीं करना पड़ता | जब ताई के बच्चे खाना खा लेते तब मीना और उसका भाई जाकर उन लोगों की झूठी थाली में से बचे हुए आम के छिलके और तरबूज के छिलकों में लगा गूदा खाने पहुंच जाते और चुपके चुपके खाते ताकि कोई उन्हें देख ना ले |
एक बार मीना ने बाजार में अमरूद के ठेले से अमरूद उठा लिया उसको पता भी नहीं था कि ऐसे अमरूद उठा लेना चोरी करना होता है वो तो बड़ी हसरत से इतने सारे अमरूदों को देख रही थी तो ठेले वाले ने देख लिया और मीना को मारने दौड़ा और उसके हाथ से अमरूद भी छीन लिया |
वहीँ इत्तेफाक से उसके ताऊ जी के बेटे निकल पड़े उन्होंने देख लिया था कि ठेले वाला हाथ उठाने वाला था | वैसे तो परिवार का काफी नाम था मगर मीना के परिवार में सभी दाने दाने को तरसते थे, घर आते ही ताऊ जी के बेटे ने मीना को बुलाकर एक झंनाटेदार थप्पड़ लगा दिया ,मीना को तो समझ ही नहीं आया कि ये थप्पड़ उसे क्यों पड़ा |
उसके बाद उसका जीवन यूँ ही चलता रहा वह धीरे-धीरे बड़ी हुईं | एक ही परिवार में एक भाई पूरी तरह से संपन्न हो जाता है और दूसरे भाई के हाथ में छोटा होने के कारण वो संपन्नता के अधिकार ही नहीं होते वो कुछ कह ही नहीं पाता अपने लिए तथा अपने परिवार के लिए यही बजह थी कि एक परिवार ताऊ जी का भरपूर आनंदित था और वहीँ दूसरी तरफ मीना अपने भाइयों एवं माता-पिता के संग गरीबी का जीवन जी रही थी | कुछ समय के पश्चात उसके पिता को कहीं से एक संस्था के बारे में जानकारी प्राप्त हुई वो वहाँ गए उनको वहाँ का वातावरण तथा वहाँ की ज्ञानवर्धन करने वाली बातेँ बड़ी अच्छी लगीं | उन्होंने मीना को वहां भेज दिया, जिससे मीना ने वहाँ की सभी अच्छी बातों को ग्रहण किया वहाँ के अच्छे संस्कारों को अपने जीवन में उतारकर वह इस योग्य बन गई कि भविष्य में कभी कोई मुसीबतों का सामना करने में सक्षम है वह उन्हें झेल सके |
फिर मीना की शादी हो गई | जैसे कि अन्य ल़डकियों के सपने होते हैं अपने सपनों का 'राजकुमार 'अपने जीवन साथी के लिए उसका पति बहुत प्यार और सम्मान करने वाला हो उसकी भी यही कल्पनाएं थी | वह बहुत गुणी और संस्कारी लड़की थी, लेकिन किस्मत उसे यहां भी धोखा दे गयी | उसकी इच्छानुकूल उसे कुछ भी ना मिला सब पर पानी फिर गया | उसका जीवन बचपन से ही कष्टमय बीता था, लेकिन वह क्या करती संस्कारवान थी सब कुछ सहती रही |
बच्चे हो गए उनकी जिम्मेदारी और घर की जिम्मेदारी उठाते _उठाते तथा पति के कटु व्यवहार को झेलते-झेलते उसकी आधी उम्र गुजर गई | मीना यह सब बच्चों की ख़ातिर बर्दाश्त करती रही कि एक दिन यही बच्चे बड़े होकर हमारा सहारा बनेंगे, हमारी उम्मीदें पूरी करेंगे | जब बच्चे छोटे होते हैं तो माँ बाप के सहारे के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ते, उन्हें अपनी दुनियाँ माँ बाप में ही नजर आती है | विशेषकर माँ से ज्यादा लगाव होता है क्योंकि माँ ही बच्चों के ज्यादा करीब होती है और बच्चों की मार्गदर्शक होती है क्योंकि बच्चे अपनी हर बात माँ से ही कह पाते हैं |
जब बच्चे उन्नति करते हैं तब माँ उन पर गर्व महसूस करती है और उनकी हिम्मत बनती है फिर बड़े होकर बच्चों को अपनी आज़ादी ज्यादा अच्छी लगती है | माँ बाप के साथ से बंधन महसूस करते हैं |
ऐसा सभी नहीं करते लेकिन ज्यादातर बच्चों की यही विचारधारा होती है शादी के बाद परिवार का दायरा सीमित होने लगता है, वे चाहते तो हैं कि माता-पिता आएँ लेकिन मेहमान की तरह आयें और कुछ दिन रहकर चले जाएँ, अपना हक ना जताए | ऐसी भावना से माँ तो बहुत हताश हो जाती है क्योंकि उसकी तो सारी आशाओं
बस यही मीना के साथ हुआ उसे अब हर जगह से निराशा ही निराशा हाथ लगी वह अपने जीवन से इतनी परेशान हो गई थी कि एक बार तो उसने अपना जीवन ही समाप्त करने की कोशिश की थी I ना ही पति ने प्यार से रखा और ना ही उसे कभी सम्मान दिया हमेशा मीना की बेइज्जती होती रहती थी ना ही बच्चों ने वो सम्मान दिया जिसकी वह हकदार थी जिनके लिए उसने ज़िन्दगी में समझौता किया था | ज्यादा शिकायत करने पर पति घर से निकल जाने की धमकी देने लगता , अब मीना को अपनी दुनियाँ उजड़ती नजर आने लगी, जब वह अकेली होती वह बहुत रोती उसे बहुत दुख होता सोचती कि क्या मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं रह गया |
एक बार उसने अपने पिता को अपनी परेशानियों के बारे में लिखा तो पिता ने भी यही सीख दी कि बेटा मायके से जिस बेटी की डोली उठती है फिर ससुराल से उस लड़की की केवल अर्थी ही निकलती है | इसलिए अब जैसा भी है तुम्हें उसका सामना करना ही पड़ेगा | मीना को अपने पिता की बातों से बड़ी मायूसी हुई उसे लगा कि उसके साथ अब कोई भी नहीं है | जिनके ख़ुश होने से वह खुश होती थी और थोड़ा सा भी कष्ट होने पर दुखी होती थी, जिनको संवारते _संवारते अपनी इच्छाओं की ओर उसने ध्यान ही नहीं दिया चाह कर भी कोई उड़ान नहीं भरी अपने सपनों को मार कर हमेशा परिवार के लिए ही सामंजस्य बिठाती चली आयी, हरदम उनका सहारा बनती आयी वो सब अपनी ही दुनियाँ में सिमट कर रह गए जिनका मीना दम भरती थी |
अब वह ऐसे मोड़ पर खड़ी थी जहाँ से उसे सिर्फ और सिर्फ अकेलापन महसूस हो रहा था |
वो सबके लिए जी रही थी और सब अपने लिए एक अलग ही दुनियाँ में मगन थे | ना ही वह अपने लिए अपना आसमान चुन सकती थी और ना ही कोई मंजिल दिख रही थी मीना को लगने लगा कि सबकुछ स्वार्थ पर टिका हुआ है सबको 'अपना सपना अपनी दुनिया 'इसके आगे कुछ भी नहीं क्या नारी का कोई अस्तित्व नहीं है जिनका उसने निर्माण किया अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया क्या उनकी नजरों में उस स्त्री का कोई महत्व नहीं कोई अस्तित्व नहीं है |
बहुत कुछ सत्य समझने के बाद उसको एक दिन उम्मीद की किरण नजर आयी, उसको अह्सास हुआ कि वह अब इतना सब कुछ देखने के बाद अब अपने लिए समय निकलेगी एक पहचान बनाएगी अपने लिए जियेगी | अब वह हजारों लोगों के लिए उम्मींद की किरण बन गई | क्योंकि उसने अपने लिए एक आसमाँ चुन लिया था एक उम्मीद भरा चमकता सितारा जो उसे दूर तक सफलता की ऊंचाइयों में प्रकाशित हो रहा था |
उमा शर्मा 'उमंग '
झाँसी उo प्रo