"भारत माता की जय "
एक महीना हो गया आज ही के दिन वह तिरंगेमे लिपट कर आ, हम सब की जिन्दगी मे ना खत्म होने वाला आँखो मे आसुओं का सैलाब दे गया । उसके वापस आये सामान मे उस की हाथ की लिखी चिट्ठी भी थी । जिस को उसने लगभग देश पर बलिदान होने के दो दिन पहले ही लिखी थी। उसने लिखा था ..
माँ सादर प्रणाम,
"घर की याद आती है । दुश्मन के कितनी ही चौकियाँ उड़ा जब आगे बढे तो ,दुश्मन नें हमे चारो ओर से घेर लिया है। जब तक साँस रहेगी मातृभूमि की रक्षा के लिए डटे हैं ।शायद अब मातृभूमि का कर्ज निभाने का" ..।
हर जन्म मे मैं तुम्हारा ही बेटा बन जन्म लूँ , जिसने मुझे बचपन से ही देश भक्ति की सीख दी । हर जन्म मेंआप ही मेरी माँ बनो ।नविता बहुत मन की कच्ची है मै नही आ पाया तो ना जाने मेरे जाने के बाद क्या कर बैठे"? उसकी कोख मे पल रहे मेरे अंश को भी, आप देश पर मर मिटनें का पाठ पढाना ।मैं तो मां ,घर के प्रति फर्ज नही निभा पाऊगा ।बापू अब कैसे है? बिस्तर से उठ पाते है या नही "।
अब आपको ही उस घर को सम्भालना होगा । चाहे खेतों मे हल जोतना हो या घर के कार्य हों आपने हमेशा ,सभी चुनौतियों को बखुबी निभाया है। शायद ये पत्र पहुचने से पहले ....
पत्र पढ कर उसे लगा वह अब कभी उठ नही पाएगी...उस का दिल बैठने लगा । दूर रेडियो पर बजते गाने की आवाज उसके कानो मे पड़ी. ।
"तुझको चलना होगा ....
जीवन कभी भी ठहरता नही है ।
आधी से तूफा से डरता नही है पार हुआ जो चला सफर मे .....
गाने के बोल सुन ,वो बुदबुदायी हा गर्व है "मुझे बेटे तुम पर "... जिसने देश के लिए जान दी.........। हर जन्म मे तुम ही मेरे बेटे बनो .....।
उठी और रसोई की तरफ बढ चली ।
बबिता कंसल
दिल्ली