एक सपने की मौत

सृजन
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         मेडिकल सुपरिटेंडेंट मलखान सिंह लगातार आते कोरोना के  केसों  से पहले  ही परेशान थें |

तभी डॉक्टर वैभव, मलखान सिंह के कमरे में दाखिल हुए और बोले -" किशोरी बाबू की पत्नी मर गईं हैं | उनकी बॉडी  उठाने के लिए कोई एंबुलेंस वाला अभी तक नहीं आया है.. .अब  ? "

मलखान सिंह डॉक्टर .. वैभव की बात को बीच में ही काटते हुए बोले - " अब, बॉडी  को ले जाने के लिए, एंबुलेंस नहीं मिल रही है तो, मैं कहाँ से  एम्बुलेंस लाऊं..? जाओ जाकर किसी प्राईवेट गाड़ी वाले को या किसी ऑटो  वाले को बोलो कि वो, किशोरी बाबू की पत्नी की बॉडी  को घाट तक ले जाने की व्यवस्था करे | "

 और, मलखान सिंह ने दुसरा सिगरेट सुलगा लिया | दरअसल कोरोना मरीजों के लगातार अस्पताल आने और बेड की किल्लत और ऑक्सीजन- वेंटिलेटर की कमी से जूझ रहे अस्पताल की स्थिति से वो कुछ परेशान तो थे ही | रही -सही कसर   उनके दस साल के पोते के खराब होते स्वास्थ्य ने पूरी कर दी थी | गौरव को सांस लेने में परेशानी महसूस हो रही थी , और उसे भी कहीं कोविड हुआ तो !

इसलिए भी शायद, मेडिकल सुपरिटेंडेंट मलखान सिंह कुछ ज्यादा ही खीजे  हुए थें |

लेकिन, डॉक्टर वैभव मलखान सिंह से ऐसे नाजुक वक्त में ये भी नहीं कहना चाह रहे थे कि सर कोई ऑटो वाला भी कोविड पेशेंट की बॉडी  अपनी गाड़ी में ढोकर नहीं ले जाना चाह रहा है | आटो वाले को डर है कि कहीं वो, या उसकी सवारी भी कहीं कोविड से मर गये तो..?

या अमूमन जैसा  कि होता है लोगों को अगर ये पता चल गया कि फलाने आटो वाले ने कोविड की बॉडी  को शमशान घाट पहुंचाया है  तो, उसके ऑटो में कोई   भी पैसेंजर बैठना नहीं चहेगा |

  किशोरी बाबू, मलखान सिंह के आफिस के बाहर ही खड़े थें | पचहत्तर साल से कम के ना रहे होंगे | धोती- कुर्ता.. हाथ में छड़ी | वे मलखान सिंह और डॉक्टर वैभव की बातें सुन रहे थें | ये खबर सुनी तो वहीं कुर्सी पर धम्म से गिर  गये पडे़ |

  ..उनके बाबूजी रामटहल साव इसी चंपारण से थें | गाँधी बाबा का पूरा सहयोग किया था उन्होंने  | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में | चाहे नील की खेती का विरोध हो | या  असहयोग आन्दोलन | या  भारत छोडो़ आन्दोलन | सबमें बढ़- चढ़  कर हिस्सा लिया था रामटहल साव ने | गाँधी बाबा जब भी चंपारण आते  रामटहल साव के घर पर ही रुकते | अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले कई किस्से सुनाते रहे थें रामटहल साव , किशोरी बाबू को |

"किशोर बाबू .. ऐ..किशोरी बाबू..  कोई ऑटो वाला नहीं मिल रहा है  इस वक्त | अपनी  पत्नी की लाश आप उठवाइये | अभी मेडिकल इमर्जेंसी है | हम ज्यादा टाइम तक बॉडी  नहीं रख सकते | आप कहें तो किसी ठेले वाले को बुलवा दूं | " डॉक्टर वैभव जल्दी बाजी दिखाते हुए बोले |

"सत्याग्रह का ये हाल होगा.. मुझे नहीं पता था..! " किशोरी बाबू के मुंह से एक अस्फुट  आवाज निकली..." कृपाशंकर...ए.. कृपाशंकर... " वार्ड ब्वाय  को डॉक्टर वैभव ने आवाज लगाई |

" हां साब बोलिये.. " कृपाशंकर सुर्ती मलता हुआ आया |

" जा.. शनिचरा  वैन वाला को बुला ला | किशोरी बाबू की पत्नी..  जानकी देवी की.. बॉडी  ले जानी है | "

 डॉक्टर वैभव कृपाशंकर को समझाते हुए बोले |

कुछ देर बाद शनिचरा वैन टुनटुनाता हुआ आकर खड़ा हो गया |

तब  ,डॉक्टर वैभव.. किशोरी बाबू.. कृपाशंकर. और शनिचरा ने मिलकर किसी तरह जानकी देवी की लाश को वैन पर लादा | और, शनिचरा, वैन पर पडी़ जानकी देवी की लाश को खींचता हुआ शमशान की तरफ ले कर चल पडा़ |

इधर... लाऊडस्पीकर पर एक पुराने फिल्म का गीत बज रहा था- " दिल... दिया है जाँ भी देंगे.. ऐ... वतन.. तेरे लिए.|"

और, किशोरी बाबू गमछे के कोर से अपने आंसू पोंछते हुए , वैन के पीछे- पीछे चल रहे थें l

उनके, अंदर अब टूटकर बिखरने लगा है  l चंपारण का नील विद्रोह, असहयोग आँदोलन, भारत छोडो़ आन्दोलन गाँधी बाबा... और... रामटहल साव के सपनों का हमारा भारत... !!

महेश कुमार केशरी

 बोकारो,  झारखंड

  

 

 

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