प्रगटी उमंग हृदय तल में...
हरियाली खुशहाली छाई
हुई तड़ाग की भरपाई
इससे पहले तप्त धरा
संतप्त रही पिछले कल में ।
सुखद सुखद लगता प्रभात
रात अब करती सुहानी बात
उलझन सुलझन में बदली
दमकी बिजुरी सी पल में ।
गीत गाये झिंगुरिया छुपकर
मोर रखे कदम चुन-चुनकर
इठला रहा निरख निज छाया
हरित गिरी जल- दर्पण में ।
वर्षा ने तंबू से गाड़े
मेघ बजा रहे खूब नगाड़े
लो आनंद ॠतु पावस का
निकल ना जाये ये छल में ।
सावन आयो मनभावन आयो
प्रगटी उमंग हृदय तल में ।।
- व्यग्र पाण्डेय
गंगापुर सिटी, राजस्थान