छम छम बाजे बूँदों के घुँघरवा ।।
हरियाली छाई नदियाँ इतराई
झरनों पर कैसी आई तरुणाई
पहाड़ों की चोटी पे बैठे बदरवा ।
छम छम बाजे बूँदों के घुँघरवा ।।
दिन भीगे भीगे स्याह भीगी रातें
फिसलन भरी राहें टपकते अहाते
मेंढ़क की टर्राहट मचाये गदरवा ।
छम छम बाजे बूँदों के घुँघरवा ।।
मयूर नाचे कागा फड़फड़ाये
ऋतु पावस की सबको लुभाये
झींगुर के स्वर में लागे कहरवा।
छम छम बाजे बूँदों के घुँघरवा ।।
- व्यग्र पाण्डेय
गंगापुर सिटी, राजस्थान