पहले पिता,भाई,पति फिर संतान की सुनो।
महिला-महिला की दुश्मन,
ससुराल में बन न पाता अपनापन।
सब को सहन करो,चुप रहो
चाहे पहुँच जाओ शमशान में।
थोड़ा कठिन है नारी जीवन,अपने हिंदुस्तान में।
गृहस्थ महिला
सबसे सस्ता मजदूर,
न छुट्टी न पगार,
जिम्मेदारी की अतिमार।
त्यौहारों व मेहमानों में,
काम का अतिभार।
जीवन यूं ही बीत जाता है,अपने मकान में।
थोड़ा कठिन है नारी जीवन,अपने हिंदुस्तान में।
भेदभाव व अत्याचारों को सहती,
चुटकुलों में,व्यंग में मुख्यतः रहती।
खोई खोई सी,
कुछ जागी सी कुछ सोई सी।
स्वतंत्र देश की परतंत्र नारी,
वह स्वाभिमान में।
थोड़ा कठिन है नारी जीवन,अपने हिंदुस्तान में।
माना के बदलाव आया,
थोड़ा हक मिला,सुरक्षा मिली।
नारी आगे बढ़ चली,
कूद पड़ी हर मैदान में।
पर घर की जिम्मेदारी फिर भी रहती।
दोहरी मार वह सहती।
खुद ही खो गई वो अपनी पहचान में ।
थोड़ा कठिन है नारी जीवन,अपने हिंदुस्तान में।
कामकाजी महिला हो,
सुशील हो
और सुंदर भी हो,
फिर तो मुसीबतों के पहाड़ बड़े-बड़े।
कितने ही अमानव राह में खड़े।
न जाने कब कहाँ,फंस जाए किसी तूफान में।
थोड़ा कठिन है नारी जीवन,अपने हिंदुस्तान में।
भारतीयता के संग,
थोड़ा आधुनिक हो जाओ।
साहस व धैर्य अपनाओ।
आत्म चिंतन करो,
व्यवस्थित कर लो अपना जीवन,
थोड़ा खुल कर रहो,जिओ हर पल मुस्कान में।
थोड़ा सरल कर लो नारी जीवन,अपने हिंदुस्तान में।
पुष्पेंद्र कुमार सैनी(प्र0अ0)
प्रा0 वि0 मानकपुर
थानाभवन (शामली)