सावन में घटा छायी

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 जब सावन में  घटा छायी

और चमकती चंचला संग बूंदों ने ली अंगड़ाई

मन में उमंग भरी

मैंने भी अपनी लेखनी उठाई

कुछ रंग भरे कागज़ पर और

पकौड़ो संग ,चाय

घड़घड़ाहट करते मेघों को 

उतार लायी  अपने आंगन में ..........

पावस की पहली बारीश झरे ,

भीगा भीगा मेरे मन सहला गई

शीतल चले बयार, महके माटी

बदरिया संग दामिनी की चमक

श्यामल मेघ का संदेश सुना गई

कोयल कूके ,मयूरी नाचे ,

पपिहा बोले पीहू- पीहू

कितनी निराली छटा छा गई

सावन में पुलकित धरा

सावन की बूंदे

कागज़ की कश्ती

फिर बचपन की याद दिला गई।

-बबीता कंसल

दिल्ली 

 

 

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