अपनों से हर कदम पर मिलती शिकस्त
जूझती रहती है हर कदम पर ये बेटियां
अरमां दिल में पालकर बढ़ती रही है बेटियां ।
लिंग भेदभाव की भेंट भी ये चढ़ती रही
पथरीली पगडंडी पर चुपचाप चलती रही
फिर भी अपना पथ बना लेती ये बेटियां
कांटों से सुंदर पुष्प चुनती रही हैं बेटियां।
पर्वत सी कठिनाइयों को संग में समेटकर
अनंत आकाश की आकांक्षाओं को लेकर
जीवन डगर पर आगेबढ़ती जाती ये बेटियां
नन्हें परों से ही उड़ान भरती रही हैं बेटियां ।
कल्पना की ऊंची उड़ान भरने की जिजीविषा
इन्द्रधनुष सी सप्तरंगी दुनिया की दृढ़ इच्छा
सपनों की लकीरें बनाती मिटाती ये बेटियां
अपनों की बनाई राह पर चलती रही है बेटियां ।
बाहर की दुनिया में अपना सम्मान बचाना
परिवार की मर्यादा का हरदम वचन निभाना
अन्तर्द्वन्द की की पीडा से गुजरती ये बेटियां
अविश्वास की तराजू में तुलती रही है बेटियां ।
शिकवा नहीं कोई,बस फर्ज निभाती है हंसकर
सबकी खुशियों को अपना बनाती ये बेटियां
वात्सल्य, स्नेह की गंगा बहाती रही है बेटियां
हृदय में बसते स्वप्निल संसार को समेटकर
यथार्थ के धरातल पर नयी दुनिया बसाकर
सभी रिश्तों को दिल से निभाती ये बेटियां
अपना अस्तित्व भूलकर जीती रही है बेटियां ।
-अलका शर्मा
शामली, उत्तर प्रदेश