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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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गुरुवार, 9 सितंबर 2021

बचपन

 ये बचपन की हैं यादें,

            जो बार-बार मन आयें।
हर बार एक प्यारी सी ,
        अनुभूति छोड़ कर जायें।।

पल में हँसना ख़ुश होकर,
            पल में ग़ुस्सा हो जाना।
फिर माँ का गोदी लेना,
          दुलराना औ समझाना।।

माँ के आँचल की ममता,
           में कुछ भी याद न आये।
मीठी-मीठी लोरी सुन,
             हौले-हौले सो जाये।।

कोई लौटा दे बचपन,
          ये बच्चे बन दिख जायें।
गोदी में लेकर इनको,
           फिर से नाचें, इतरायें।

प्रो. सत्येन्द्र मोहन सिंह

 

 

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