यादों में याद रहीं हैं।
नाना-नानी की बातें,
अम्मा ने सही कहीं हैं।।
स्कूल न जाते थे हम,
नाना ग़ुस्सा हो जाते थे।
दो पैसे के सिक्कों को ले,
मास्टर जी को दे आते थे।।
फिर डाँट-डपट करके हमको,
स्कूल भेज वो आते थे।
‘क’ से कोयल, ‘ड’ से डमरू,
मास्टर जी याद कराते थे ।।
छुट्टी होने पर दो पैसा,
देकर वो गीत सुनाते थे।
फिर रस्ते में चट-पट लेकर,
खाते-खाते घर आते थे।।
ऐसे पढ़ गए पाँच दर्जा,
‘अव्वल’ आ गए सभी में हम।
बीता बचपन पर बचपन की,
ये यादें कभी न होंगी कम।।
- प्रो० सत्येन्द्र मोहन सिंह