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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

खालुबर का शेर

 


  (परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय)

         जम्मू कश्मीर राज्य की सीमा पर लगभग 814 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा का निर्धारण किया गया है।  यह नियंत्रण रेखा जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों राजौरी, पुंछ, उड़ी, कारगिल और लेह होते हुए सियाचिन तक जाती है।  इस नियंत्रण रेखा से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 1 है जो श्रीनगर, कारगिल, द्रास और लेह को जोड़ता है। इस राजमार्ग के बंद होते ही लेह का संबंध देश से टूट जाता है। इन क्षेत्रों में 6000 फिट से 17000 फिट तक की ऊंचाई वाले पहाड़ है। जिन पर पूरे वर्ष बर्फ जमा रहती है। इस क्षेत्र में गहरी खाईयां, दूर दूर तक फैली कटीली झाड़ियां तथा सकरे और दुर्गम मार्ग हैं। सितंबर अक्टूबर में तापमान शून्य से भी नीचे पहुंच जाता है।

  भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में 08 मई से 26 जुलाई तक कश्मीर के कारगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष को कारगिल युद्ध के नाम से जाना जाता है। कारगिल युद्ध वही लड़ाई थी जिसमें पाकिस्तानी सेना ने द्रास कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा करने की कोशिश की थी। भारतीय सेनाओं ने इस लड़ाई में पाकिस्तानी सेना को बुरी तरह परास्त किया। पाकिस्तानी सेना को परास्त करने वाले वीरों में उत्तर प्रदेश के कैप्टन मनोज कुमार पांडेय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है जो कि अपनी आखिरी सांस तक खालुबर को मुक्त कराने के लिए लडे।

  कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय का जन्म 25 जून 1975 को सीतापुर जिले के रूढा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम गोपीचन्द्र पाण्डेय तथा माता का नाम मोहिनी पाण्डेय था। उनकी शिक्षा सैनिक स्कूल लखनऊ में हुई। सेना में कमीशन के पश्चात वे सेना की 1/11 गोरखा राइफल में पदस्थ हुए।

  उनकी यूनिट ने सियाचिन में अपना कार्यकाल पूरा किया था और सारे सैनिक पुणे में 'पोस्टिंग' का इंतज़ार कर रहे थे। बटालियन की 'एडवांस पार्टी' पहले ही पुणे पहुंच चुकी थी। सारे सैनिकों ने अपने जाडे के कपड़े जमा कर दिए थे और ज़्यादातर सैनिकों को छुट्टी पर भेज दिया गया था। तभी अचानक आदेश आया कि बटालियन के बाकी सैनिक पुणे न जाकर कारगिल में बटालिक जायेंगे जहाँ कि पाकिस्तान ने घुसपैठ करके हमारी धरती पर कब्जा जमा लिया है।

  उनकी यूनिट आपरेशन में पहुँच गयी. कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय को मन मांगी मुराद मिल गयी।  उन्हें यूनिट के नं 5 प्लाटून का प्लाटून कमाण्डर बना दिया गया। करीब दो महीने तक चले आपरेशन में उन्होंनेकुकरथाग और जुबर टाप जैसी कई चोटियों को पाकिस्तानी सैनिकों से मुक्त कराया। उनके साहस, बीरता और जज्बे को देखते हुए उन्हें 2-3 जुलाई 99 की रात को खालुबर चोटी को मुक्त कराने की जिम्मेदारी दी गयी।

  खालुबर चोटी पर कब्जा करने के लिए उनके दल ने आगे बढ़ना शुरू किया। इसी बीच पाकिस्तानी सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियां बरसाना शुरू कर दिया। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कैप्टन पाण्डेय अपने दल को छुपाव में ले गये और रात होने की प्रतीक्षा करने लगे। रात में प्राकृतिक छुपाव मिलते ही अपने दल को दो भागों में बांटकर अलग अलग दिशाओं से पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा बनाए गये बंकरों पर धावा बोल दिया। देखते ही देखते उन्होंने दो बंकरों को तबाह कर दिया और इन बंकरों से गोलियां चला रहे पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।

  वह तीसरे बंकर को नष्ट करने के लिए तेजी से आगे बढे। दुश्मन मशीन गन से भारी गोलीबारी कर रहा था। कैप्टन पाण्डेय का कंधा और पैर गोलियां लगने के कारण घायल हो चुका था। अपने जीवन की परवाह न करते हुए वह आगे बढ़ते रहे। मीडियम मशीनगन के ब्रस्ट फायर के बीच  ग्रेनेड से हमला कर तीसरे बंकर को तबाह कर दिया। वह रेंगते हुए चौथे बंकर के पास पहुंचने में सफल रहे। चौथे बंकर को उडाने के लिए ग्रेनेड फेंका। किन्तु उसी बीच पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें देख लिया और मशीन गन से उनके ऊपर फायर झोंक दिया। उनके सिर में सामने की तरफ से एक गोली आकर लग गयी लगी जो कि हेलमेट को पार करते हुए सिर के पार हो गयी जिसके कारण भारतमाता का यह सपूत चिर निद्रा में लीन हो गया।

  कैप्टन मनोज पाण्डेय के अदम्य साहस, सूझ बूझ और कर्तव्यनिष्ठा के कारण खालुबर चोटी पाकिस्तानियों से मुक्त करा ली गयी और वहां पर तिरंगा लहराया। मात्र 24 वर्ष की आयु में शहीद होने वाले इस शूरवीर को 26 जनवरी 2000 को देश के सबसे बडे सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया।

  इस युद्ध की भयावहता को अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि गोरखा राइफल  की दो कंपनियों ऊपर गयी थीं जब उन्होंने खालूबार पर झंडा फहराया तो उस समय उनके पास सिर्फ़ 8 जवान बचे थे। बाकी लोग या तो शहीद हो गए थे या घायल हो गए थे।

 

    - हरी राम यादव

सूबेदार मेजर, लखनऊ 

(लेखक स्वयं इस युद्ध में द्रास और कारगिल में भाग ले चुकें हैं ।)

  

 

 

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