श्रावण माह में हरेली (हरियाली) के बाद और भी बहुत सारे त्यौहार आते हैं, उनमे से एक हलषष्ठी(छठ) का त्यौहार उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
क्यों मनाया जाते हैं - इस दिन भगवान श्री कृष्ण कन्हैया के बड़े भाई श्री बलदाऊ जी का जन्म हुआ था। इस त्यौहार को भाद्र पद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठि तिथि को मनायी जाती है।
यह व्रत मातायें अपने संतान की दीर्धायु और खुशहाली जीवन के लिये करती हैं।
कथानुसार- द्वापर युग में माता देवकी अपने पुत्र कृष्ण को बचाने के लिये यह व्रत (उपवास) रखती थी, क्योंकि कंश देवकी के सभी पुत्रों का वध कर देता था।तब नारद जी आ कर माता देवकी को यह व्रत करने की सलाह दिये थे। माता देवकी जब व्रत रखी तब उसके प्रभाव से श्री कृष्ण बच गये। उसके बाद कृष्ण कन्हैया जी कंश का वध कर के विजय प्राप्त किये।
तब से आज तक ये व्रत को हिन्दू धर्म की सभी महिलायें अपने-अपने संतान की रक्षा,सुख-सम्पत्ति और खुशहाली जीवन के लिए रखती हैं।
"इस व्रत को विवाहित महिलायें ही रखती हैं"।
इस दिन सभी महिलायें प्रातः काल उठ कर करंज या महुआ पेड़ की टहनी का दातुन (ब्रश) करती है। गाँव-गाँव में सुबह से लाई,दूध, दही, घी, महुआ, दोना-पत्तल बिकने आते हैं। इस दिन सिर्फ भैंस का दूध, दही, घी को ही उपयोग में लाया जाता है। और बिना हल चले उत्पन्न खाद्य सामग्रियों को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है।
पूजा की सामग्री - चना, गेहूँ, धान, महुआ, दूध, दही, घी, नारियल, फल-फूल, लाई, हल्दी और हल्दी से भीगे हुए कपड़े का टुकड़ा।
सभी महिलायें नयी-नयी साड़ी और सोलह श्रृँगार करती हैं। और एक बड़ा थाल(परात) में पूजा की सभी सामग्री लेकर मन्दिर में जाती हैं। मन्दिर में सभी महिलायें एकत्रित होती हैं। वहाँ सगरी (दो छोटे-छोटे गड्ढे) के
पूजा समाप्त होने के बाद सभी महिलायें अपने-अपने घर आती हैं और घर में भगवान को भोग लगाती हैं। उसके बाद पसहर चाँवल और छः प्रकार के भाजी बनाती हैं।
"इस व्रत में पसहर चाँवल भाजी और अंग्रेजी मिर्ची का बहुत महत्व होता है"।
आज के दिन बच्चों का स्कूल से जल्दी अवकाश हो जाता है और सभी बच्चें अपने-अपने घर खुशी-खुशी आते हैं।
महिलायें अपने-अपने बच्चों को हल्दी से भींगा छोटा सा कपड़े का टुकड़ा उसके पीठ पर छः बार मार कर बच्चों को आशीर्वाद देती हैं।
बच्चें खुशी-खुशी आशीर्वाद लेते हैं।
प्रसाद ग्रहण करने का नियम - सर्वप्रथम महिलायें प्रसाद को छः पत्तल में पसहर चाँवल, दूध, दही, घी और भाजी को निकालती है और घर के बाहर कुत्ते, बिल्ली, चिड़िया,गाय-बछड़ा आदि....के लिये रखती हैं।
फिर घर के सभी बड़े और छोटे परिजन मिलकर प्रसाद को ग्रहण करतें हैं,और त्यौहार का आनंद लेते हैं।
इसके बाद दोना-पत्तल को नदी या तालाब में विसर्जित दिये जाते हैं।
यह त्यौहार को हिन्दू धर्म में विशेष महत्व दिया गया है यह परिवार के खुशहाली जीवन तथा एकता के भाव से मनाते हैं, तथा भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
कबीरधाम, छत्तीसगढ़