उग्रधूप है जलधर देना
धानखेत हैं समय- समय पर
थोड़ा- थोड़ा पानी देना
गेहूं देना गन्ना देना
अरहर गोभी कन्ना देना
कोल्हू चला आज है तेरा
बस थोड़ा गुड़धानी देना।
दादा देना दादी देना
नाना के संग नानी देना
भूले हुए मिले हों इक दिन
ऐसी एक कहानी देना
जगा हुआ हूं कई दिनों से
उमस की खबरें सुन -सुन के
टूटे नींद सुबह सूरज तक
ऐसी रात सुहानी देना
जैसे तैसे 'शी'- 'शी' बीता
हरा पेंड़ पत्तों से रीता
आज हुआ कुछ सूर्य सुभीता
बस थोड़ी मनमानी देना
टूटे हुए बहुत रिश्ते हैं
निष्ठुर वे मुझको कहते हैं
जोड़ सकूं अपनों को फिर से
थोड़ी मीठी वाणी देना
मोती प्रसाद साहू
अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड