अपने जीवन के मूल्यों को, अपने से अधिक कोई क्या जाने,
चिंतन मनन और आत्ममंथन कर, स्वयं ही स्वयं को परखें,
नित्य होने वाली, अपनी भूलों की गणना ख़ुद ही करके देखें,
दूसरों पर उंगली उठाने से पहले, ख़ुद के गिरेबान में झाँकें,
मन के अंदर की डायरी के, पन्नों को अच्छी तरह से निहारें,
सही ग़लत का मापदंड कर, स्वयं उसका परिणाम निकालें,
जितनी भी ग़लती निकलें, कोशिश कर अवश्य उन्हें सुधारें,
है यह चुनौती बड़ी, क्या हम कभी अपनी ग़लती को मानेंगे,
ग़लत किया जिनके साथ, क्या झुक कर उनसे माफ़ी मांगेंगे,
मुश्किल है पर असंभव नहीं, यदि ख़ुद में परिवर्तन हम ला दें,
शुद्ध होगा मन भी तन के जैसे, आत्म शुद्धि अगर कर डालें ।
-रत्ना पाण्डेय
बड़ोदरा, गुजरात