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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 1 जून 2021

प्रलय तुम लौट जाओगे

 

विगत से सीख लेलो तुम

कभी भी टिक न पाओगे,

प्रलय तुम लौट जाओगे.

माना आज तुम भारी,

मनुज करवट किए बैठे,

मगर यह भूल तेरी है,

कि तुम जीत जाओगे,

प्रलय तुम लौट जाओगे.

मनुज ने दस दिनों में ही,

यही कुछ खोज डाला था,

हाथ धो ले औऱ संगत से करे दूरी,

वही से लौटना तय था,

न माने कुछ मनोरोगी.

प्रलय तुम लौट जाओगे.

मगर अब यह भी सच है कि,

मनुज ने सीख ले ली है.

नियम पालन करेंगे वे,

ख़ुशी से हाथ धोवेंगे,

रिश्ता औऱ नाता भी,

बहुत कम में समेटेगे!

प्रलय तुम लौट जाओगे.

रही इस बार की पारी!

समझ लो हार जाओगे!

पलट कर फिर कभी भी तुम,

मनुज क़ो फिर न पावोगे

प्रलय तुम लौट जाओगे.

नहीं तुमने अभी समझा,

क्यों संगत मैने ये तानी!

खुशियाँ अगर बाटी,

तो सब कुछ ऑनलाइन ही,

 मुझे विश्वास था ख़ुद पर,

मुझे लड़ना भी आता था,

इसी खातिर मै झंडा गाड़ कर,

बैठा यही पर था!

प्रलय तुम लौट जाओगे.

मै देखूंगा, कि कब तक तुम,

यहां टिकते, टिकाते हो!

मै ऑनलाइन काम करवा कर

खुशी से जीना सिखला द!

कभी तुम सोच पाओ ना,

वहां मै राह बनवा दू,

प्रलय तुम कुछ नहीं बस,

दस दिनों की एक छाया हो,

मगर हम धो अगर दे तो,

मिनट में तुम मीट जाते हो,

प्रलय तुम लौट जाओगे.

प्रलय तुम लौट जाओगे.

-सत्यप्रकाश पाण्डेय

वैज्ञानिक

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय

वाराणसी, उत्तर प्रदेश

 

 

 

 

 

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