माथे की मणि

सृजन
0

     
          
तालियों की गड़गड़ाहट   के साथ प्रमिला का नाम पुकारा जा रहा था ।

आज की गद्य लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार "श्रीमति प्रमिला को दिया जाता है "।

खुशी से उसकी आँखें छलछला गयी ।

 उसे  याद आया जब शादी के बाद सारा घर सम्भालते हुए भी सास जी से हमेशा अपमानित होना।

 और तानें सुनना बस यही उसकी दिनचर्या थी ।

अच्छे संस्कारों के कारण शान्त रह कर अपनी पीड़ा को दबा लेना, किसी से कुछ न कहना । मन ही मन घुटती रही ।

एक समुद्र जो अपनी सिमटी लहरों को किनारों पर बाहर फेंकना चाहता था ।

कुछ ऐसा ही था उस के दिल का  हाल भी ।

उस समय उसने अपने हाथ में क़लम थाम ली थी ।और अपनी पीड़ा काग़ज़ पर उतारनी शुरू कर दी थी । इस सोच के साथ भले ही वह इस दुनिया सें रूखसत हो जाएगी।

 पर   शब्द  जो मुझे अमर रखेगें।वो मेरी पहचान इस संसार से जाने के बाद भी हमेशा बनाये रखेगें ।जीवन अनमोल है । उसे हर हाल मे खुशी से जीना चाहिए। आगे बढ़ कर पुरस्कार लेने चल पड़ी ।

बबीता कंसल

दिल्ली

 

 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!