कुछ लोग लाकडाउन में सड़क नाप रहे,
कुछ घर बैठे ही सड़क पर आ गए हैं
कुछ अपने देश में बे-घर हुए हैं,
कुछ विदेश से अपने घर आ गए हैं ।
किसी की दाल ही नहीं गलती ,
तो कहीं दाल में काला है,
कोई जलेबी की तरह सीधा है,
कोई जले पर नमक छिड़कने वाला है
कोई घर बैठे रोटियां तोड़ता है,
कोई दाल भात में मूसरचंद बन जाता है,
जब मुफलिसी में आटा गीला होता है,
तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है।
पापड़ बेलने पड़ते हैं सफलता के लिए,
आटे में नमक तो चल जाता है,
आदि अंत सोच के कहना,
गेंहू के साथ घुन भी पिस जाता है।
गुड़ का गोबर करने से
अपना हाल बेहाल है,
कभी ऊँट के मुंह में जीरा,
कभी मुंह और मसूर की दाल है।
कोई तिल का ताड़, तो कोई
राई का पहाड़ बनाता है,
आँखें मटकाता है, कोई
आँखों से काजल चुराता है।
अक्ल का दुश्मन है पर
आँखों में धूल झोंकना आता है,
आँखे चुराने वाले की,
आँखों का पानी गिर जाता है।
चिकनी चुपड़ी बात करके,
उल्लू बनाना तो बाएं हाथ का खेल है
भरी थाली लात न मारो
क्योंकि पैसा हाथ का मैल है।
कोई अक्ल का पुतला है,
तो कोई आँखों का तारा,
किसी के भाग्य खुलते हैं,
तो कोई मुसीबत का मारा।
किसी के दूध के दाँत हैं,
तो कई दूध के धुले हैं,
कुछ बिके पानी के मोल ,
कुछ पानी के बुलबुले हैं।
किसी को छटी का दूध याद आता है,
दूसरा रंग न चढ़े तो,
दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है।
शादी की बात सुन मन में लड्डू फूटें,
और शादी के बाद दोनों हाथ लड्डू आते हैं,
जिसने खाए वो भी पछताए,
जिसने नहीं खाए, वो भी पछताते हैं।
किसी के मुंह में घी शक्कर,
तो कोई मक्खन लगाता है,
जब छप्पर फाड़ कर मिलता है,
तो मुंह में पानी भर आता है।
कोई सब्ज बाग दिखाकर
लोहे के चने चबाता है,
कोई गर्दन काटकर,
डेड़ चावल की खिचड़ी पकाता है।
तूफान खड़ा कर दिया,
तीन तेरह करने के बाद,
यह भी सच है कि,
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद
बे-पेंदी के लोटे सब
गिरगिट से रंग बदलते हैं,
खरबूजे को देख कर
खरबूजे रंग बदलते हैं।
आम के आम और गुठलियों के दाम
मिलने से पौ बारह होती है,
चार पैसे हाथ में आते हैं,
और खूब चाँदी होती है
सिर आँखो पर बैठता है कोई,
कोई होता है सिर चढ़ा,
कोई तोलता है बोलने से पहले,
कोई बोलता है बोल बड़ा।
कोई पढ़ता है जी जान से,
कोई तोते की तरह पढ़ता है,
कोई पढ़ने के नाम पर आग बवूला,
कोई आपे से निकल पड़ता है।
कोई सीधी नज़र से देखता है,
तो कोई सीधे मुँह नहीं करता बात,
वो तो मरता क्या न करता,
मतलब के लिए बनाया गधे को भी बाप।
घर ही मंदिर मस्जिद गिरजा,
मानो तो देव नहीं पत्थर,
लोहा लेंगे कोरोना से,
जब हम बैठें अपने घर।
विनय बंसल
आगरा, उत्तर प्रदेश