भारतवर्ष की पावन, मखमली हरियाली से ढकी हुई भूमि, दुग्ध धारा से झरने, पुष्प लताओ से ढकी विद्या
आश्रमों की बाड़ और एक घने वृक्ष के नीचे बैठे विद्यार्थी और बिल्कुल वृक्ष के केंद्र भाग में छाया में बैठ इन को पढ़ाती है उपाध्याया",। इस कथन को अतार्किक ठहराने के लिए आज भी देश भर में औपनिवेशिक मानसिकता वाले इतिहासकारों की कमी न है। इनका तर्क है कि प्राचीन भारत में स्त्रियों का कोई महत्व ही न था, ने उन्हें शिक्षा प्राप्त थी ने कोई विशेष स्थान।
स्वतंत्रता के बाद लोगों की मानसिकता में परिवर्तन आने लगे व सरकार ने भी इसमें रूचि ली अंततः प्राचीन भारत में स्त्री शिक्षा शीर्षक से कई शोध कार्य शुरू हुए और इनका सकारात्मक परिणाम अब दिखता है हम अब इस सच्चाई से मुंह मोड़ सकते हैं कि भारत के प्राचीन काल में स्त्रियों को शैक्षिक स्वतंत्रता प्राप्त थी कम से कम गुप्तकाल से पहले तक तो यह अवश्य विद्यमान थी |
मानव विकास का परिष्कृत रूप प्राचीन सभ्यताएं है। भारत में सिंधु घाटी सभ्यता ने अपना विश्व विख्यात विकसित व प्रौद्योगिकी पूर्ण रूप का साम्राज्य बिखेरा। हम इस काल की स्त्री शिक्षा के बारे में पूर्णतः जान पाते यदि इसकी चिह्न रूपी लिपि पढ़ लेते। फिर इतना तो है ही कि यहां की स्त्रियों को मात्र देवी सा सम्मान प्राप्त था।
यह विवाद का मुद्दा है कि भारत पर आर्यों का आक्रमण हुआ कि नहीं परंतु उनसे जो वैदिक समाज स्थापित हुआ वह प्राचीन भारत में स्त्री शिक्षा का स्वर्ण काल कहा जा सकता है। आघा, घोषा, लोपमुद्रा व गार्गी इस काल की विदुषी महिलाएं थी। प्राय माना जाता है कि ब्राह्मण कन्याए विद्यायन कराती जो वे अपने पितरों से सीखती। काल में कई दफा गुरु माता के द्वारा अध्यापन कराने का उल्लेख भी मिलता है। ना तो इस काल में उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता था ना ही पुरुष प्रधान समाज के ढर्रे में दबा रहना पड़ता था। वेदों में स्त्री शिक्षिकाओं को इस काल में उपाध्याया कहा गया है, खासकर उपनिषदों में यह शब्द बार-बार मिलता है। शिक्षिकाओं की तीव्र और कुशाग्र मति थी। हमारे महाकाव्य में सीता मंदोदरी द्रोपदी आदि शिक्षित नारीयां थी। बाद के अराजक काल में जब भारत प्रौद्योगिकी के गणित, खगोल, चिकित्सा,आयुर्वेद आदि में प्रगति कर रहा था तो महान ऋषि यों की महिला सहायिकाए होती थी, ठीक आज की नर्सों की भांति। मौर्य काल में महिला स्थिति में गिरावट आने लगी, गुप्त काल में सती, बाल विवाह जैसे सामाजिक अपराधों का समाज में प्रथा के
इन सब से पहले वे वैदिक काल के बाद पुनर्जागरण काल में, जब जैन व बौद्ध विचारों का उद्भव हुआ।स्त्रियों का शैक्षिक उत्थान हुआ,वह संघो में प्रविष्ट हो गई और इन विचारों का प्रसार करने लगी। अपनी चेतना से महावीर स्वामी व महात्मा बुद्ध को प्रभावित किया।
रोमिला थापर व रामशरण शर्मा जैसे इतिहासकारों ने भी प्राचीन भारत में स्त्री शिक्षा पर व्यापक शोध किए। रामशरण शर्मा के अनुसार गुप्त काल में महिलाओं को महाकाव्य व पुराण सुनने व सीखने की अनुमति थी, जय श्री कृष्ण की पूजा कर सकती थी और उन्हें जीविका प्राप्त करने की भी स्वतंत्रता प्राप्त थी।
अरब तुर्क आदि विदेशी आक्रमणों ने स्त्री शिक्षा को बाधित किया। यही कारण था कि मध्य काल में स्त्री शिक्षा हाशिये पर रही,इसे पुनः शक्ति स्वतंत्रता आंदोलन से मिली।
वर्तमान काल में शोधों के बाद लिखी साहित्यिक कृतियों में प्राचीन भारतीय स्त्री शिक्षा पर व्यापक प्रकाश डाला गया। वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर लिखे गए आचार्य चतुरसेन शास्त्री के" वयं रक्षाम् '' उपन्यास में रामायण कालीन विदुषी स्त्रियों का वर्णन हैं। उनके ही अन्य उपन्यास" वैशाली की नगरवधू'' में महाजनपद कालीन स्त्री उत्थान पर व्यापक प्रकाश डाला गया है। इसी तरह नवयुग को प्राचीन भारत से परिचित कराने वाले अमीश त्रिपाठी ने भारत ही नहीं विश्व को भी अपनी ''शिव त्रयी " रचनाओं के माध्यम से प्राचीन भारतीय वैभव से परिचित कराया। उनकी इस कृति में'' आयुर्वती " नामक महान वैज्ञानिक महिला का उल्लेख है, जो संभवत सिंधु सभ्यताकालीन हैं।
हालांकि वर्तमान में साहित्य में शब्दों के माध्यम से भारत ही नहीं विश्व के लोगों को बताया जा चुका है कि भारत अपनी प्राचीन काल में स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में विकसित था।किंतु फिर भी अभी भारत के बड़े तबके को इस सच्चाई से परिचित कराने की बेहद आवश्यकता है।
सुरेंद्र सिंह रावत
विद्यार्थी - कला तृतीय वर्ष
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर
( राजस्थान)