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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 1 जून 2021

नारी तू नारायणी

 नारी तू नारायणी से विभूषित कर सनातन काल से ही भारतीय संस्कृति में नारियों को विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया है। वेदों के कुछ मंत्रो से ज्ञात होता है कि वैदिक युग में नारियों के लि
ए शिक्षा अनिवार्य समझी जाती थी। नारी का शिक्षित सांस्कारिक होना अनिवार्य समझा जाता था। भारतवर्ष में नारियों को पूज्या शक्तिस्वरूपा माना गया है। इतिहास का कुछ अंधकारमय कालखंड छोड़ दिया जाए तो प्राचीन समय से ही नारियों की शिक्षा एवं संस्कारों पर विशेष ध्यान दिया गया। गोभिल गृहसूत्र में कहा गया है कि अशिक्षित नारी यज्ञ करने में समर्थ नहीं होती थी।वेदों की ऋचाओं को गढने में भारतीय विदुषियों का विशिष्ट स्थान रहा है।

ऋगवेद के दशम मण्डल के39 एवं 40 वे सूक्त की ऋषिका रोमशा, लोपामुद्रा, विश्ववारा, इंद्राणी, शची और अपाला थी। वैदिक युग में स्त्रियां वेदाध्ययन तथा प्रातः शाम को होम इत्यादि करती थी। शतपथ ब्राह्मण में व्रतोपनयन का उल्लेख मिलता है।हरित संहिता के अनुसार वैदिक काल में दो प्रकार की कन्याएँ होती थी। ब्रह्मावादिनी और सद्योपात् । सद्योपात 16 साल तक की कन्याएँ, जब तक उनका विवाह नहीं हो जाता था वेदाध्ययन करती थी।उन्हें यज्ञों के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण मंत्र पढाए जाते थे।संगीत एवं नृत्य की शिक्षा भी दी जाती थी।ब्रह्मवादिनी को यज्ञकार्य एवं वेदाध्ययन, भैष्यचर्या के अधिकार प्राप्त थे।सुलभा, गार्गी, मैत्रेयी परम विदुषी महिलाएं पावन भारतीय धरा पर अवतरित हुई है। घोषा ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया-

" मैं राजकन्या घोषा सर्वत्र वेद की घोषणा करनेवाली, सर्वत्र वेदों का संदेश पहुँचाने वाली स्तुतिपाठिका हूँ।"

   ऋग्वेद विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ  के कुछ मंत्रों में 70 ब्रह्मवादिनी स्त्रियों का उल्लेख है। शौनक ने वृहत्देवता में मंत्रदृष्टा नारियों का वर्णन किया है। राजा जनक के शासन काल में ऋषि याग्वल्क्य और ब्रह्मवादिनी गार्गी के बीच हुए शास्त्रार्थ का वर्णन वृहदारण्यक उपनिषद में मिलता है। महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्रेयी भी परम विदुषी एवं ब्रह्मवादिनी थी।500वर्ष ईसा पूर्व अष्टाध्यायी व्याकरण के प्रणेता पाणिनी ने भी नारियों के वेदाध्ययन की बात कही है।सूत्रकार पतंजलि ने जिस शाक्तिकी शब्द का प्रयोग किया है उसका अर्थ भाला धारण करने वाली है। जिससे ज्ञात होता है कि एक ओर जहाँ उस समय की नारियां हवन यज्ञ में पति के साथ भाग लेती थी वही राजा दशरथ की पत्नी कैकेयी एवं खेलराज की भार्या विश्पला के युद्ध में भाग लेने का वर्णन भी ग्रंथों में मिलता है। जिससे पता चलता है कि वैदिक काल में नारियों की साहित्यिक तथा युद्ध कला सीखने की व्यवस्था बहुत अच्छी थी। बौद्धकालीन स्त्रियों की शिक्षा के विषय में जातक कथाओं से पता चलता है। जैन और बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि कुछ भिक्षुणियों ने साहित्य सृजन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।जिसमें सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा भी थी।उस समय  पितृसत्तात्मक व्यवस्था होने के कारण स्त्री शिक्षा वैदिक काल की अपेक्षा कम महत्व की ओर ही चली गई।महात्मा बुद्ध के मठों मे स्त्रियों को प्रवेश की अनुमति थी। वे वहाँ पर स्वतन्त्रतापूर्वक विद्याध्ययन करती थी।परंतु समय व्यतीत होने के साथ ही मठों में स्त्री शिक्षा अच्छी नहीं रही।

 मध्यकाल में स्त्रियों की शिक्षा की प्रगति शासकों और समृद्ध लोगों के संरक्षण में धीमी गति से हुई। उच्च कुल की हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं साहित्यिक कृतियों में रूचि ली।परंतु आम हिंदू विदुषियों का अभाव ही दिखाई देता है।जिसका कारण मध्यकालीन शासकों, सेनापतियों का आततायी होना है।इस समय में नारियों की स्थिति अत्यधिक शोचनीय हो गई। प्रदाप्रथा और बालविवाह का प्रचलन बढ गया।सामान्यतः शासक और  उच्च वर्ग के लोग अपनी पुत्रियों एवं बहनों को शासनकार्य में प्रशिक्षित करते थे। आम परिवारों के लिए नारियों की शिक्षा व्यवस्था लगभग नगण्य ही थी।लडकियों की शिक्षा के प्रति उनके माता पिता अन्मनयस्क हो गए थे। स्त्रीशिक्षा के मार्ग में सामाजिक बाधाएं और असुरक्षा की भावना भी थी।

 आधुनिक युग को अगर वैज्ञानिक युग के साथ ही नारी युग भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्राचीन युग की शानदार परम्परा का निर्वहन करते हुए नारियां फिर से उसी गरिमामय स्थान की ओर अग्रसर हो रही है।

 प्रयास अलग हो सकते हैं, अन्दाज जुदा हो सकते है

जीवन के इस पथरीलें पथ पर,कंकड़ भी चुभ सकते हैं

बढ चली जब इस पर आगे, पीछे कदम नहीं रखना है

धरा से लेकर क्षितिज तलक,इतिहासनया अब रचना है

 

अलका शर्मा स०अ०

कन्या उच्च प्राथमिक विद्यालय भूरा,

 कैराना, शामली

 

 

 

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