हार नहीं मानूँगी

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जीवन में कितने हीं मुश्किल आ जाये ,

तम बनकर जीवन में क्यों ना छा जाये ?

हर मुश्किल को मैं हँसते-हँसते सह जाऊँगी,

चलते - चलते लड़खड़ाये कदम जो मेरा।

गिर - गिरकर हर बार मैं सँभल जाऊँगी ,

चिटीं सा दिवारों पर चढ़ती हीं मैं जाऊँगी।

ऐ ! जिंदगी, मैं तुझसे कभी हार नहीं मानूँगी....

 

कभी - कभी जीवन में ऐसे हालात भी आते हैं,

दरिया ऊफान पर होता है , नैया डगमगाती है।

ऐसे हालातों में भी खुद का हौंसला बढ़ाऊँगी,

धारा के अनुकूल हरपल बहती हीं मैं जाऊँगी।

तुझ पर खुदा हर पल मैं विश्वास बनाये रखुँगी,

तु बन जाना खेवनहार,मैं तनिक नहीं घबराऊँगी।

ऐ जिंदगी मैं तुझसे कभी हार नहीं मानूँगी.....

 

कभी - कभी निराशा मन में घर कर जाती है,

असफलता के भय से मन अक्सर घबरा जाता है।

मन की हर डर पर मैं विजय पताका फहराऊँगी,

अपने बनाये राहों पर मैं आगे हीं बढ़ती जाऊँगी,

एक दिन मेरी किस्मत का सितारा भी चमकेगा

एक दिन ऐसा भी आयेगा,मैं मंजिल को पा जाऊँगी।

ऐ जिंदगी मैं तुझसे कभी हार नहीं मानुँगी.....

 

-कमला सिंह 'महिमा'

  पश्चिम-बंगाल

  

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