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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 1 जून 2021

कतार में खड़ी ज़िन्दगी

            आज समस्त विश्व में लगभग 60 देशों के बाद भारत में भी कोरोना वायरस  (कोविड 19) का कहर बरस रहा है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि चीन से आए इस कोरोना वायरस का अभी कोई पूर्णकालिक इलाज सुनिश्चित नहीं हो पाया है। अमेरिका जैसा सशक्त देश भी आज इसके सामने घुटने टेक चुका है और असहाय नजर आ रहा है। रोज हज़ारों की संख्या में लोग मृत्यु की गोद में जा रहे हैं। इस महामारी की रोकथाम के लिए आज विश्वभर मे बड़े स्तर पर रिसर्च की जा रही है। विश्व में इससे सम्बन्धित जन जागरूकता अभियान मीडिया के माध्यम से चलाए जा रहे हैं। भारत में तो फोन पर सबसे पहले इससे सम्बन्धित ही जानकारी उपलब्ध कराई जाती है बाद में ही आप किसी से बात कर सकते हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा मास्क, सेनेटाइजर
के प्रयोग, साफ-सफाई आदि पर विशेष बल दिया जा रहा। लॉकडाउन (तालाबंदी) के माध्यम से लोगों को घरों में रहकर सोशल डिस्टेंसिंग का पूर्ण ध्यान रखने के आदेश जारी किए गए हैं। आज पाठशालाएं, मन्दिर, मस्ज़िद, चर्च एवं गुरुद्वारे सभी धार्मिक स्थल बन्द हैं। बहुत आवश्यकता पड़ने पर ही जैसे स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं या दैनिक आवयकता को ध्यान में रखकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए व पूरी एहतियात बरते हुए घर से बाहर निकलने का आदेश जारी किया गया है।

इस गम्भीर स्थिति में डॉक्टर, पुलिस, सफाईकर्मी आदि अपना एक कर्म योद्धा की तरह विशेष योगदान देकर देश के प्रति अपना पूर्ण दायित्व निभा रहे हैं। जहाँ ये सभी लोग अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने परिवारों को छोड़कर रात दिन जन सेवा में जुटे हैं वहीं दूसरी और आज काफी लोग इस महामारी को गम्भीरता से न लेकर ऐसे घूम रहे हैं जैसे कि उन्हें कोई भय ही न हो। इस महामारी की गम्भीरता को दरकिनार करकर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ाते दिखाई दे रहे हैं। बिना मास्क के सड़कों पर घूम रहे हैं, पुलिस द्वारा रोके जाने पर उनकी अवमानना के साथ-साथ उनसे अभद्र तरीके से पेश आ रहे हैं जोकि बेहद अमानवीय कृत्य है।

उधर जैसे ही शराब के ठेके खुले लोगों की भीड़ ऐसे उमड़ी जैसे अगर कुछ और दिन ये अमृत उन्हें न मिलता तो कोरोना से पहले वे इसके अभाव से मर जाते। सोशल डिस्टेंसिंग को ताक पर रखकर एक के ऊपर एक गिरते नज़र आए। ऐसे लगा जैसे कि मौत के आग़ोश में आने को ज़िन्दगी कतार में खड़ी हो। इससे दु:खद और कुछ नहीं हो सकता कि इतने संवेदनशील मसले को जो न केवल उनके लिए नुकसानदायक है बल्कि इसके दुष्परिणाम उनके परिवार व समाज को अपनी जान देकर चुकाने पड़ रहे हैं और अभी और चुकाने पड़ेंगे। पुलिस, डॉक्टर और सफाईकर्मी आज ऐसे ही लोगों के अमानवीय व्यवहार के रहते अपनी जानें खो चुके हैं और निरन्तर खो रहे हैं। ये लोग ये भूल गए हैं कि जब अमेरिका और अन्य शक्तिशाली विकसित देश जहाँ न पैसों की कमी है न तकनीकी की। आज वहाँ के हालात भी हमसे छिपे नहीं हैं वह भी त्राहि त्राहि चिल्ला रहे है। तो भारत जो कि एक विकासशील देश है, एक छोटे से उतार-चढ़ाव से हमारी अर्थव्यवस्था हिल जाती है तो ये महामारी हम पर व हमारे देश पर कितना बुरा असर डालेगी यह कहना कतैयी गलत न होगा। समय की गम्भीरता को समझकर इस मुश्किल दौर में हम सभी को एकजूट होकर इस समस्या से इस महामारी से लड़ना होगा।

डॉ० दीपा 'दीप'

सहायक प्रोफेसर

दिल्ली विश्वविद्यालय

 


 

 

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