घर के लिए जैसे छत होती,
परिवार में वही होते है पिता।
जिम्मेदारी की चादर ओढे रहते,
बिना रूकें चलतें जाते है पिता।।
हार कभी भी जो ना मानें,
सबके सुख-दुख को पहचानें।
स्वयं के सब स्वपन भुला के,
सबकी खुशियों पर लुट जाते।।
सबके दिल का हाल वह जानें,
अच्छा-बुरा सब कुछ तो जानें।
बच्चों की खुशियों पर हो न्योछावर,
परिवार के मुखिया होते पिता।।
ब्रह्मा-विष्णु-महेश के समान पिता,
जन्मदाता-पालनहार-सरक्षंणकर्ता,
जिनके सानिध्य में मिलता असीम स्नेह,
सब तीर्थों से बढकर होते है पिता।।
जिनकी उँगली पकडकर चलना सिखा,
जग में अच्छे-बुरा संस्कारों को जाना।
घर में नीवं की मजबूती का आधार पिता,
माँ है अगर धरा तो आसमान है पिता।।
पिता की लाडली रहती है बिटियाँ,
अपनी लाडो का कन्यादान करतें।
करके पत्थर सीना कलेजे के टुकडे को,
नयन अश्रु लिए ससुराल बिदा करते पिता।।
पिता संघर्ष के समय होसलें की दीवार है,
मुसीबतों को झेलनें वाली दो धारी तलवार हैं।
परिवार की गाडी को चलाने वाला सारथी हैं,
कठिनाइयों को झेलनें वाला महारथी है।।
-नीतू सिंह
मेरठ, उत्तर प्रदेश