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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 1 जून 2021

माँ

 तुझको ही तो देखकर माँ जीने का मन किया

लिखी जो तेरे चेहरे पर नज़्म ऐ दास्तां उसे पढ़ने का मन किया ।

तूफ़ानी हवाओं में भी जो तूने थाम रखा था अपनी सांसो को

सब कुछ आसानी से सहकर तूने रोशन किया उन अंधेरी रातों को

माँ वरना गिर गई होती मैं, टूट गई होती मैं

इस दुनियां के कुछ लोगो ने ना जाने कितना दर्द दिया

तिनका-तिनका इकठ्टा कर जो तूने मेरा पेट भरा

अपनी खुशियों को तज़ कर जो तूने मुझमें तेज़ भरा

धैर्य ,सौम्यता का जो तूने पाठ पढ़ाया उसे सहेजकर रखना है

मुठ्ठी में आसमां के सितारों को जो तूने पकड़ना सिखाया

उसे बुलन्दियों में भरना है

दुनियां की अच्छाइयों का जो तूने ज्ञान दिया

अपने कुल का नव अभिमान दिया

अपनी आँचल के छावों तले धरती पर जन्नत नाप दिया

 

तुझको ही तो देखकर माँ जीने का मन किया

लिखी जो तेरे चेहरे पर नज़्म ऐ दास्तां उसे पढ़ने का मन किया ।

 

खिलखिलाती है तू जब मुझमें खुशियों की आँधी चलती है

सहलाती है तू जब मुझमें ईश्वर की भांति चलती है

माँ ! तूने जब अपनी उंगुलियां मेरी मुठ्ठी में थमाई थी

तब मैंने सारे जहां की खुशियां चंद लम्हों में पाई थी

काश ! वही खूबसूरत नज़्म अफ़साना होता

तेरी उंगुलियों की तरह यह जामाना होता

उछल जाते कुछ और भी स्त्री के दबे कुचले पांव भी

यदि ना कोई निर्भया जैसा निर्मम फ़साना होता

माँ पिता का डर भी कभी -कभी जायज सा लगता है

निर्दय जब प्रियंका रेड्डी जैसी तस्वीर गढ़ने लगता है

 

तुझको ही तो देखकर माँ जीने का मन किया

लिखी जो तेरे चेहरे पर नज़्म ऐ दास्तां उसे पढ़ने का मन किया ।

 

तूने ही तो जिज्ञासा दिया,तूने ही मेरा अस्तित्व गढ़ा

चारो ओर से मिले अश्रुओं में भी तूने मुझमें मुस्कान भरा

मेरी माँ ,प्यारी माँ इस दुनियां से भी न्यारी माँ

जब जब मैं भावनाओं के पुंज पिरोती हूँ

तब तब यही दुआ अपने ख़ुदा से करती हूँ

महफूज़ रहे  वो मेरी माँ

खुश रहे वो मेरी माँ

स्वस्थ रहे वो मेरी माँ

आवाज़ तेरी बुलन्द रहे

उसमें गुंजित तेरा समस्त भूमण्डल रहे

 

तुझको ही तो देखकर माँ जीने का मन किया

लिखी जो तेरे चेहरे पर नज़्म ऐ दास्तां उसे पढ़ने का मन किया ।

                    - सुजाता सिंह

भदोही, उत्तर प्रदेश 

 

                 

 

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