वर्तमान समय में देश एक भयावह स्थिति से गुजर रहा है। कोरोना नाम के अदृश्य दुश्मन ने देश को अपनी चपेट में ले लिया है। आंखों के सामने ही लोगों की सांसें उखड़ रही है। उससे लड़ने के लिए साधन कम पड़ गये है। साधन इसलिए नहीं कम पड़ गये हैं कि देश में साधन कम हैं। साधन इसलिए कम पड़ गये हैं कि महामारी का प्रसार भयावह बाढ़ जैसा है और साधनों की काफी मात्रा में कालाबाजारी भी हो रही है। इस महामारी को नियंत्रित करने के लिए डाक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ, तकनीक मरम्मत करने वाले, संयंत्रों को चलाने वाले, आक्सीजन सिलेंडर को सही समय और सही जगह पहुंचाने, वितरण प्रणाली को देखने वाले जैसे बहुत से लोगों की कमी महसूस की जा रही है। इस कमी को पूरा करने के लिए हमारे पास बेहतर, प्रशिक्षित और अनुभवी विकल्प के रूप में मौजूद हैं प्रदेश के सेवानिवृत्त सैनिक।
वर्तमान समय में हमारे प्रदेश में सेवानिवृत्त सैनिकों की संख्या लगभग 4, 50,000 है। इनमें अलग-अलग कोर / रेजिमेंट के अधिकारी, जूनियर कमीशन्ड अधिकारी और अन्य रैंकों के सैनिक शामिल हैं। इनमें से अस्पतालों में काम करने के लिए सेना चिकित्सा कोर /मेडिकल कोर्स किए हुए अन्य कोर के लोगों को , मरम्मत और मशीनों के संचालन के लिए इलेक्ट्रिकल मैकेनिकल इंजीनियरिंग कोर के लोगों को, अस्पतालों में लोगों की आवाजाही के बेहतर नियंत्रण के लिए सेना पुलिस, नये बन रहे कोरोना अस्पतालों में इंजीनियरिंग कोर/ मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस, संचार तथा सूचना तकनीकी में सेना सिग्नल कोर, जीवन रक्षक दवाओं तथा आक्सीजन की कालाबाजारी को रोकने के लिए सेना इंटलीजेंस, आक्सीजन सिलेंडर और दवाओं को शीध्र पहुंचाने की ब्यवस्था में सेना सप्लाई कोर, अन्य व्यवस्थाओं से जुड़े काम के लिए सभी कोर के एन सी ओज तथा प्रशासकीय व्यवस्था को चलाने और उसमें मदत के लिए अधिकारियोंं और जूनियर कमीशन्ड अधिकारियों की मदत ली जा सकती है।
इस स्थिति से निपटने में जिस तरह से हमारे देश की तीनों सेनाएं लगी हुई हैं, तीव्र गति और आशा से कम समय में अस्पतालों का निर्माण, दूसरे देशों से बिभिन्न चिकित्सीय उपकरणों तथा जीवन रक्षक दवाओं का परिवहन तथा खराब पड़े आक्सीजन प्लांटों की मरम्मत कर रहीं हैं, वह काबिले तारीफ है। सेवारत सैनिक तो कोरोना से लड़ने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा ही रहे हैं। लेकिन सेना के ऊपर इस समय दोहरी जिम्मेदारी पड़ गयी है- सीमाओं की सुरक्षा और कोरोना से युद्ध। इस समय चिकित्सा व्यवस्था के हालात को बेहतर बनाने के लिए जनता की निगाह सेना पर लगी हुई है। सेना के ऊपर जनता का अटूट विश्वास है। और इस अटूट विश्वास की वजह है कठिन अनुशासन और सभी के साथ बिना भेदभाव के काम करने की शैली। सेना की जिम्मेदारी के बोझ को कम करने के लिए सेवानिवृत्त सैनिकों को भी भूमिका दी जा सकती है। यदि सेवानिवृत्त सैनिकों को इस कोरोना काल में उनकी पिछली भूमिका में लाया जाता है तो वह बेहतर विकल्प होंगे।
सेवा में रहते हुए एक सैनिक कुशल प्रशासक, बेहतरीन प्रबंधक, असाधारण नेतृत्व क्षमता, धैर्य, साहस और संयम की प्रतिमूर्ति होता है। उसके अंदर बिकट परिस्थितियों में भी तत्काल निर्णय लेने की गजब कीक्षमता होती है। वह सेकेंड के सौवें भाग में निर्णय लेने की कुशलता रखता है। अपनी सेवा के दौरान अपने से वरिष्ठ लोगों के साथ सहयोगी और परामर्शदाता की भूमिका और कनिष्ठ लोगों के साथ माता, पिता , बड़े भाई और शिक्षक की भूमिका निभाने का बहुत लम्बा अनुभव होता हैै। जिस तोप, टैंक, रडार, मिसाइल को बड़ी बड़ी कंपनियों के बड़ी बड़ी डिग्रियों वाले इंजीनियर बना कर देते हैं ऐसे दुरुह उपकरणों को सेना के जवान एक एक पुर्जे को खोलकर पुनः उसी तरह जोड़ देते हैं। समय समय पर उसकी मरम्मत करके उसे कामयाब रखते हैं।
एक सैनिक कभी न तो रिटायर होता है और न ही बूढ़ा होता है। वह जीवन की आखिरी सांस तक सैनिक होता है। उसका कर्म, धर्म, ईमान और पूजा देश की रक्षा होती है। एक सैनिक कभी भी अपने देश को संकट में नहीं देख सकता। यदि देश के ऊपर आये इस संकट में सरकार को सहयोग की आवश्यकता अनुभव होती है तो सेवानिवृत्त सैनिकों का लंबा अनुभव देश पर आये इस संकट को टालने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। इसी व्यापक अनुभव के कारण ही सरकार और सेना सेवानिवृत्त सैनिकों को वरिष्ठ नागरिक का दर्जा देती है।
यदि सेवानिवृत्त सैनिकों को सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश के लिए काम करने का अवसर दिया जाए तो वे सिविल प्रशासन के साथ मिलकर कोरोना से लड़ने में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। अगर सरकार इस प्रशिक्षित मानव शक्ति का उपयोग करती है तो समाज का बहुत बड़ा कल्याण होगा। सेवानिवृत्त सैनिकों को मिला यह अवसर सेना के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय, सरकार के लिए संजीवनी और उनको सेवानिवृत्त सैनिकों को एक सजग नागरिक सिद्ध करेगा।
हरीराम यादव ‘फैजाबादी’
सूबेदार मेजर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश