चक्रव्यूह कोरोना का

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 खिलवाड़ किया प्रकृति से..

उस गुनाह का सिला पाया हैसबक सिखाने को रक्तबीज ने
इक बूंद कोरोना गिराया है
मानव प्रकृति पर सदियों से
क्यूँ कहर ढाता रहा है
अब रुकी रुकी सी है जिंदगी
ये कैसा पड़ाव आया है
भूल चुके थे बंदगी को ...
लूट मार थी हर तरफ
हैवानियत और इंसानियत का
फ़र्क अब मानव को समझ आया है

सबक सिखाने हमको
रक्तबीज ने इक बूंद कोरोना छलकाय़ा है

ए मानव सुनो तुम...
मॉंग लो मुआफी
जमीं ओ आसमां से वरना
त्राहि त्राहि मचा देगा
कुदरत ने जो वायरस को बुलाया है

ये कैसा इम्तिहान है ..
क्यूँ हम सब बंधे बैठे है ...देखो
मंदिर मस्जिद गुरूद्ववारों में
आज कैद हुआ खुदाया है ।
सिखला रही प्रकृति हमको
कह रही है संभल जाओ
अंतिम चेतावनी देकर
इक छोटा सा पाठ पढ़ाया है..

बंधन क्या है ये समझाने
रक्तबीज ने इक बूंद से धरती पर चक्रव्यूह बनाया है ..


सिखला रही प्रकृति हमें की

क़ैद की जिंदगी क्या होती है
पिंजरो में रहने का दर्द
क्या अब भी मानव समझ पाया है ?
रोई जमीं तड़पा आसमां
जब कलियों को रौंदा गया था
उन मासूमों की चीखों का
रक्तबीज हिसाब चुकाने आया है

सबक़ सिखाने मानवता को
रक्तबीज ने अभी तो सिर्फ़
एक बूंद खून को गिराया है ..

प्रभजोत कौर

मोहाली, पंजाब 

 

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