दिव्य स्वरूपा, हंस वाहिनी,
तू इतना कर दे ।
शब्दों की सुर- सरिता बनकर,
रसना मे भर दे ।
माँ वीणा- वादिनि वर दे ।
माँ वीणा- वादिनि वर दे ।
राग-द्वेष पाखंड न दे तू ,
बुध को सुध कर दे।
ज्ञान-पुष्प की एक किरन से,
मन-पावन कर दे।
माँ वीणा वादिनि वर दे।
माँ वीणा वादिनि वर दे।
श्वेतांबरधारी, कल्यानी,
वीणा वादन कर दे।
प्रेम,स्नेह,करुणा के रस को,
हर घट में भर दे।
माँ वीणा वादिनि वर दे।
माँ वीणा वादिनि वर दे।
अविवेकी के मन में माते,
ज्ञान-सुधा भर दे।
सुविचारों से हो तन मंडित,
ऐसा तू वर दे।
माँ वीणा वादिनि वर दे।
माँ वीणा वादिनि वर दे।
तु ही शारदा, तु ही ज्ञानदा,
बस इतना कर दे।
संप्रेषित कर सकूँ ज्ञान,
‘विद्या-ददाति’ वर दे।
माँ वीणा वादिनि वर दे।
माँ वीणा वादिनि वर दे।
प्रो० सत्येन्द्र मोहन सिंह
पूर्व विभागाध्यक्ष, पशु विज्ञान विभाग
पूर्व संकायाध्यक्ष, अनुप्रायुक्त विज्ञान संकाय,
महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविध्यालय ,
बरेली
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