हम उसके इक प्यादे।
साथ-साथ रहते मिलजुल कर,
मन के सीधे- साधे।।
चाहे बने शाम को तहरी,
या बैंगन का भुर्ता।
चटनी दही साथ ले खाते,
हम सब कर्ता-धर्ता।।
निम्बवा के नीचे चत्वर पर,
सभी पड़ोसी आते।
ललिता, श्यामा करै कहकही,
दादू गीत सुनाते।।
हुक्का लिये सम्हारू दादा,
लपके-लपके आते।
ढोलक और मंजीरा लेकर,
जग्गू बिरहा गाते।।
घर-चौपाल निराली।
फिर जाते अपने अपने घर,
बजा-बजा कर ताली।।
हे ईश्वर परमेश्वर मेरे,
ऐसी ख़ुशियाँ सदा रहे।
हँसते रहें सदा जीवन में,
कृपा तुम्हारी बनी रहे।।
प्रो. सत्येन्द्र मोहन सिंह
म. ज्यो. फुले रूहेलखंड वि.वि.
बरेली