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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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गुरुवार, 11 मार्च 2021

इतना भी आसान नहीं था खुद को पाना



 आज खोना आसान है, परंतु अपने विचारों पर अडिग रहकर खुद को प्राप्त कर लेना बहुत मुश्किल. कुछ अटपटी सी कही हुई बात लग रही होगी आपको. परंतु जब आप इस लेख को पूरा पढ़ लेंगे, तब आपको ऐसा लगेगा कि हां, खोना आसान है खुद को प्राप्त कर लेना मुश्किल. आज की परिस्थितियों में जब प्राइवेटाइजेशन पर चर्चा धूमधाम से चल रही है लोग इसकी बुराइयों की चर्चा करने में अपने जीवन के बहुमूल्य समय को बहुत आसानी से खर्च कर रहे हैं, तब एक वैज्ञानिक होने के नाते मेरी सूक्ष्म दृष्टि उस पर जाती है. 30 साल पहले इसी तरह हम सबके बीच चर्चा का विषय बनता था सरकारी नौकरी और प्राइवेट नौकरी. हां, मैं सच कह रहा हूं..लगभग 30 से 35 साल पहले प्राइवेट नौकरी की संभावना हमारे देश में अत्यंत कम थी, और जो उपलब्ध थी, उनके प्रति जनमानस के बीच में एक दुराग्रह था. लोग यह मानकर चलते थे, कि जो जीवन स्तर सरकारी नौकरी के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है उस की अपेक्षा प्राइवेट नौकरी में शोषण होगा और किसी भी दिन हाथ पकड़ कर बाहर कर दिया जाएगा. इस मानसिकता के प्रभाव में लगभग दो दशकों तक सामान्य जन मानस अपने परिवार के बच्चों को उस स्तर तक तैयार ही नहीं कर पाया, कि उनके बच्चे अच्छी संभावनाओं से युक्त प्राइवेट संसाधनों से सुसज्जित अच्छी कंपनियों को अपने लिए सुरक्षित कर सके. धीरे धीरे जब सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार की दुर्गंध और इसकी "एक अनार और एक लाख बीमार" की स्थिति चरम पर पहुंच गई, तब कुछ लोगों के बच्चे पढ़ लिखकर प्राइवेट नौकरियों की ओर अग्रसर होना शुरू किए. पिछले 10 सालों में प्राइवेट नौकरियों में गए हुए बच्चे, अपने परिवार को एक अच्छा जीवन स्तर देने में सफल हो रहे है. कुछ बच्चों को तो हाथ पकड़कर निकालने की बजाए, कंपनियां कैंपस में आकर हाथ पकड़ कर ले जाने लगी थी. पिछले 10 सालों में युवा वर्ग अपने को ज्यादा मजबूत प्राइवेट नौकरी में करने में सफल हो पाया है. पिछले 10 सालों में वरिष्ठ जनों के मन में जो दुराग्रह प्राइवेट नौकरी के प्रति रहता था, वह पूरी तरह से समाप्त हो चुका है. बस कमी रह गई है, परिवार के एक साथ ना होने का दुख. परंतु बच्चे को बोझ बना कर अपने साथ रखने से अच्छा है, बच्चा अपने परिवार के साथ अच्छे जीवन स्तर को प्राप्त कर रहा है और अपने परिवार को एक अच्छा सम्मान दिलाने की दिशा में सोच रहा है. आज के समय में कोई कल्पना नहीं कर सकता, किसी अच्छी कंपनी या छोटी भी कंपनी में लगी हुई नौकरी को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया जाए कि कल वह कंपनी हमको हाथ पकड़ कर बाहर निकाल सकती है!

    अब बात करें आज के दौर में. आज के समय में नई प्राइवेट कंपनियों का लोकल जन या सामान्य समुदाय द्वारा स्थापित होने की बात उसी तरह, दुराग्रह पूर्ण और संदेह की दृष्टि से देखी जा रही है, जैसे आज से 35 साल पहले प्राइवेट नौकरियों को निहारा जाता था. कोई लोन या सब्सिडी लेकर स्थापित किया जाने वाला स्टार्टअप प्लानया फिर कुछ नया उद्योग खोलने की परंपरा को आज से 30 साल बाद किस दृष्टि से देखा जाएगा, उसे हमें समझना चाहिए.

     मेरा मानना है, यह समय की आवश्यकता है. जिस तरह से 40 साल पहले प्राइवेट नौकरियों के प्रति दुराग्रह स्थापित करके, समाज ने अपने बच्चों को उस कार्य के लिए तैयार ही नहीं किया, और लगभग 20 सालों तक युवा वर्ग अपने को बेरोजगारी के कुएं में ढकेले रहने को बाध्य हो गया, उसी तरह की मानसिकता यदि हम स्टार्टअप और एंटरप्रेन्योरशिप के लिए अपनाएंगे, तो उसका शिकार आज का युवा वर्ग होगा. सोचिए जितना ज्ञान प्राप्त करने के बाद प्राइवेट कंपनी में लोग नौकरी प्राप्त कर ले रहे हैं, उससे कई गुना ज्यादा योग्यता और ज्ञान रखते हुए भी आज से 30 साल पहले का युवा रोजगार नहीं प्राप्त कर सका.. बल्कि वह तो उस तरफ सोचा ही नहीं.

     हमें आवश्यकता है, एक बार पुनः सोचने की. प्राइवेटाइजेशन के दौर में जब जिम्मेदारियों का बंटवारा हो रहा है तब, जो युवा वर्ग अपने ऊपर काम करके अपने स्तर से स्टार्ट अप स्थापित करने के पश्चात अगले 30 वर्षों में एक बड़ी व्यवस्था बना लेगा वह कितना आगे होगा. जरूर इसमें तपस्या बलिदान, तथा रिस्क लेने की हिम्मत चाहिए. परंतु हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहने से, आज के समय में प्राइवेट में भी तो नौकरी कहां मिल रही है. जो स्थिति 30 साल पहले सरकारी नौकरी की थी, उसी तरह प्राइवेट नौकरी को प्राप्त करने के लिए भी बहुत सारे लोग खड़े है. आप 50,000 मासिक की कल्पना करके काम शुरू करना चाहते हैं, आपके पीछे 10 लोग खड़े हैं जो कंपनी के लिए 30000 में ही काम कर देने को तैयार है. इन परिस्थितियों में आपके पास दो तरीके हैं. अपने ज्ञान और बुद्धि कौशल से, अपने लिए एक स्टार्टअप या कंपनी खुद स्थापित करिए. या दूसरा तरीका यह है, कि आप 30000 से कम में काम करने के लिए प्राइवेट नौकरी ज्वाइन करिए.

     बहुत सारे लोग सरकारी नौकरियों की कल्पना में अपने को बर्बाद करना छोड़ चुके हैं. अब समय आ गया है, प्राइवेट नौकरियों के इंतजार में भी समय नष्ट ना किया जाए. बल्कि हम और आप अपने हिस्से जो कुछ कर सकते हो, इसकी शुरुआत अपने बल पर अपने लिए करना शुरू करें. अपने साथ अपने को भी नौकरी दें और अपने आस पास 10 लोगों को भी. लेकिन इसके लिए सबसे बड़ी जरूरत है "आत्मविश्वास की". पिछले 12 महीनों के अनवरत सामाजिक अध्ययन के पश्चात, जो जानकारियां प्राप्त हो पाई है उससे यह साफ है कि 14 सूत्रों की जो स्थापना हम सब के द्वारा की गई है वह बिल्कुल सही है आत्मविश्वास पर पकड़ बनाने वाली कार्यशालाओं को 900 लोगों से ज्यादा लोगों पर खुद से अध्ययन करने के बाद यह बात कही जा सकती है, कि 14 सूत्रों की इकाई पर यदि काम किया जाए, तो समाज में नए एंटरप्रेन्योरशिप माइंडसेट को डिवेलप करने में हम सफल हो पाएंगे.

     डॉक्टर सत्या होप टॉक के मीट मास्टरी फॉर एजुकेशन एंड एपावरमेंट ऑफ़ टैलेंट कार्यक्रम के अंतर्गतऑनलाइन ट्रेनिंग के माध्यम से व्यक्तित्व निर्माण कि कार्यशाला में खुद को प्राप्त करना सिखाया जाता है. आत्मविश्वास को प्राप्त कर लेने वाला व्यक्ति, अपने दूसरे रूप को प्राप्त करके पूरी तरह से बदला हुआ महसूस करता है.

 निश्चित रूप से किसी भी नौकरी को प्राप्त करने के लिए या फिर अपना रोजगार स्थापित करने के लिए व्यक्ति को आत्मविश्वास से भरा होना अत्यंत आवश्यक है.

 खुद को प्राप्त करने की लड़ाई व्यक्ति को खुद शुरू करनी पड़ती है. पहला कदम ही सबसे बड़ा कदम होता है: "इनीशिएटिव". जो व्यक्ति अपनी शुरुआत करने के लिए कल का समय रखता है, उसके जीवन में एक नया कल हमेशा ही खड़ा रहता है. इसलिए जब खुद को प्राप्त करने की लड़ाई प्रारंभ करनी हो, उसमें देर नहीं लगानी चाहिए, बल्कि उसकी शुरुआत आज और अभी से करनी चाहिए.

 दूसरा कदम थोड़ा आसान होता है परंतु एकरूपता का सिद्धांत उसे बाधित करने लगता है. दूसरा कदम होता है "कंसिस्टेंसी". रोज एक ही काम करना. जिस काम को आप शुरू कर चुके हैं, उसे बिना अवकाश के अनवरत करते रहना. यह एक बोझिल सा दायित्व, बहुत कम लोग उठा पाते हैं. कुछ दिनों में उन्हें एक ही जैसा काम करते रहने से अरुचि हो जाती है, और वे नयापन प्राप्त करने के चक्कर में भटक जाते हैं. ऐसी परिस्थितियों में उन्हें अपने आसपास स्थापित लोगों को देखना चाहिए. जो दुकानदार अपनी दुकान पर रोज बैठता है, उसे रोज एक निश्चित समय पर, दुकान पर आकर बैठना ही होता है. जो डॉक्टर अच्छी प्रैक्टिस करता है, वह अपने क्लीनिक पर निश्चित ही अपने समय पर आकर बैठ जाता है. जो सफल मैदान पर खेलने वाला खिलाड़ी होता है, वह अपना अभ्यास रोजी मैदान पर नियत समय पर करता है. लेकिन हम और आप सफल व्यक्तित्व को देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं और उनकी उस योग्यता का हर स्तर से प्रशंसा करते हैं,परंतु उन्होंने उसे विद्या को प्राप्त करने के लिए एकरूपता का सिद्धांत ही अपनाया है, और एक ही काम और एक ही तरीके से काम करने को अपना सिद्धांत बना कर रखा है. मैंने कहा था ना खोना आसान है परंतु अपने को पाना मुश्किल. मेरी बात पूरी तरह से सिद्ध होगी, वैसे भी सभी जानते हैं, रोज कैची चलाने वाले डॉक्टर से ऑपरेशन कराना, ही ठीक होता है ना कि जीवन में कभी कभी वाले से..

                                                                                           क्रमशः

                                                                                                         डॉ० सत्यप्रकाश पाण्डेय

वैज्ञानिककाशी हिन्दू विश्वविद्यालय

वाराणसी , उत्तर प्रदेश 

 

 

 

 


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