संस्कृति से किसी भी राष्ट्र , जाति, समुदाय के आदर्शों, रीति
रिवाजों का ज्ञान होता है जिनके सहारे वे अपने जीवनमूल्यों को लेकर आगामी पथ पर
अग्रसर होते हैं। अतः लौकिक पारलौकिक विकास के लिए किया गया आचार विचार ही
संस्कृति है।संस्कृति अनुभवजन्य ज्ञान पर और सभ्यता बुद्धिजन्य ज्ञान पर आधारित
है। सभ्यता से आर्थिक और राजनीतिक जीवन प्रभावित होता है तो संस्कृति से
आध्यात्मिक जीवन। भारतीय संस्कृति सदा से ही अपने उदार गुणों के कारण
पंथनिरपेक्षता की पक्षधर रही है। अन्य संस्कृतियों के उत्तम विचारों को अपने अंदर समाहित
करने में एक क्षण भी नहीं लगाया और उन्हें आत्मसात कर लिया। जिससे भारतीय संस्कृति
और भी उदात्त और विस्तृत होती चली गयी। किसी ने क्या खूब कहा है
"
युग युग के संचित संस्कार,
ऋषि मुनियों के उच्च विचार
धीरों वीरों के आदर्श व्यवहार
हैं निज संस्कृति के श्रंगार "
आजकल हमें एक बात अवश्य सुनने को मिल
जाती है कि आजकल के बच्चों में संस्कार नाम की चीज देखने को नहीं मिल पाती है।नयी
पीढी संस्कारी नहीं है, उन्हें संस्कारों का ज्ञान ही नहीं
है।इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि संस्कारों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण
स्थान है।इनका पालन न करने से हमारे बडे बुजुर्गो को कष्ट की अनुभूति होती है।
उनकी चिंता सही भी है क्योंकि भारतीय संस्कृति धर्म पर आधारित है। इन्हीं
संस्कारों से मानव जीवन सार्थक एवंसफल बनता है।सनातन काल से ही भारतीय संस्कार
मानव जीवन के पथप्रदर्शक रहे हैं तथा मानव जीवन का अभिन्न अंग है। चरक ऋषि
संस्कारों का महत्व बताते हुए कहते है कि…."संस्कारों हि
गुणान्तराधानमुच्यते" भारतीय संस्कृति की
आधारभूत विशेषताओं-वसुधैव कुटुम्बकम, सहिष्णुता, विविधता में एकता, समन्वयशीलता से हमारे समस्त
संस्कार सुशोभित है।गौरतलब है कि भारतीय संस्कृति में और संस्कारों में नैतिक
मूल्यों पर अत्यधिक जोर दिया गया है।
प्रसिद्ध इतिहासकार सावित्री जी कहती
है कि " प्रत्येक मनुष्य का जीवन तथा व्यवहार उसके सामाजिक परिवेश तथा उनसे
प्राप्त नैतिक, भावात्मक, परम्परागत
संस्कारों पर आधारित रहता है। यह आदान प्रदान एकपक्षीय नहीं है।प्रत्येक मानव जहाँ
समाज में प्रचलित मान्यताओं,विश्वासों, त्योहारों एवं जीवन दर्शन से प्रभावित होता है, वहाँ
साथ ही प्रत्येक अपने व्यक्तिगत व्यवहार एवं सहानुभूति से उन संस्कारों कोचालित
तथा परिवर्तित करता हुआ समाज के लिए नये तथा उत्तम आदर्शों को प्रतिस्थापित करता
है। "
भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों में
जीवन आधारित उच्च मूल्यों का समावेश दिखाई देताहै।इस संदर्भ में भारतीय संस्कृति
एवं संस्कार एक ही सिक्के के दो पहलू नजर आते हैं। इसे हमारी विडंबना ही कहा जाएगा
कि इतनी समृद्ध विरासत होने के बाद भी भारत शताब्दियों तक परतंत्रता की बेडियों
में जकड़ा रहा और विदेशियों ने हमारी संस्कृति और संस्कारों को मिटाने का भरपूर
प्रयत्न किया परन्तु यह हमारी सांस्कृतिक विरासत ही है कि वह उनके द्वारा मिट नहीं
पाई। प्रसिद्ध शायर इकबाल जी कहते हैं कि …
यूनान -ओ-मिश्र रोमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाकी नामों निशां हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमां
हमारा।।
- अलका
शर्मा
शामली, उ०प्र०