माँ

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लिखने को जब कलम उठाई

मन से एक आवाज आई ...माँ

भगवान की वह दुआ जो हर किसी ने पाई है

भगवान ने यह कृति प्यार से बनाई है

        पाकर जिसे ने कोई निराश हुआ

        उसके आंचल की छांव में सबका ही उद्धार हुआ

        मेरी माँने भी खून से सींचा था मुझे

        देकर अपना प्यार पोषित किया था मुझे

जब रेंगती थी घुटनों पर माँने ही चलना सिखाया था

डरती थी जब अंधेरों से माँने ही धीरज बंधाया था

डांटने पर किसी के जब सहम जाती थी

मैं पाकर माँका दुलार फिर शेरनी सी बन जाती थी मैं

        आज भी हर हाल में माँको अपने करीब पाती हूँ मैं

        वह माँ ही है जिसे आज भी दुखड़ा सुनाती हूँ मैं

        कभी गरीब नहीं हुआ वह जिसने दौलत मांसी पाई है

        आज हम जो कुछ भी हैं वह शख्सियत माँने ही बनाई है

महसूस तो किया होगा

सब ने माँके प्यार को समझा तो होगा

माँके दुलार को क्यों बुढ़ापे तक भी बीमारी में माँही याद आती है

क्यों आज भी उससे खूबसूरत कोई नजर नहीं आती है

        यह माँका प्यार ही है जो रह-रहकर याद आता है

        कड़ी धूप में छांव का एहसास दिलाता है

 

संजू तोमर

शिक्षिका, शामली

 

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