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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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गुरुवार, 11 मार्च 2021

पापा को बूढ़ा होते देखा

 

                                             

जहां में हर कीमती चीज को

मैंने कूड़ा होते देखा है

 

मैं क्या गर्व करूं  इस जवानी पे

मैंने अपने पापा को बूढ़ा होते देखा है

 

जो झुलाते थे अपने हाथों में झूला

और काधों पर बैठा में दिखाते थे मेला

मैंने उन काधों को खुद झुकते देखा है

 

क्या गर्व अब अपने जवां कदमों पर

मैंने पापा के कदमों को थक कर रुकते देखा है

 

कभी चमकता था ललाट जिनका सूरज की तरह

आज उनकी काली दाढ़ी को सफेद होते देखा है

 

मैं क्या गर्व करूं इन ब्रांडेड कपड़ों पर

मैंने पापा की बनियान में छेद होते देखा है

 

मिली तरक्की तो उनकी आंखों का ख़्वाब

तिल तिल पूरा होते देखा है

 

 मैं क्या गर्व करूं इस जवानी पे

 मैंने अपने पापा को बूढ़ा होते देखा है

-सुखप्रीत सिंह "सुखी"

शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश 

 

 

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