जहां में हर कीमती चीज को
मैंने कूड़ा होते देखा है
मैं क्या गर्व करूं इस जवानी पे
मैंने अपने पापा को बूढ़ा होते देखा है
जो झुलाते थे अपने हाथों में झूला
और काधों पर बैठा में दिखाते थे मेला
मैंने उन काधों को खुद झुकते देखा है
क्या गर्व अब अपने जवां कदमों पर
मैंने पापा के कदमों को थक कर रुकते देखा है
कभी चमकता था ललाट जिनका सूरज की तरह
आज उनकी काली दाढ़ी को सफेद होते देखा है
मैं क्या गर्व करूं इन ब्रांडेड कपड़ों पर
मैंने पापा की बनियान में छेद होते देखा है
मिली तरक्की तो उनकी आंखों का ख़्वाब
तिल तिल पूरा होते देखा है
मैं क्या गर्व करूं इस जवानी पे
मैंने अपने पापा को बूढ़ा होते देखा है
-सुखप्रीत सिंह "सुखी"
शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश