दिल में कई दिनों से कुछ बातें पड़ी थी
जो अबतक अंधेरों में ही रहीं थी
सोचा जरा इन्हें देखूं आज
कहीं वक्त की धूल तो नहीं जम गई इनपे
कहीं जंग तो नहीं लगा
कबसे था ये यूं ही पड़ा
आज जरा इन्हें साफ कर
धूप दिखा आती हूं
अंधेरे से आज इन्हें प्रकाश में लाती हूं
दुनियां को ये राज बता आती हूं
पूछूं तो जरा जग से
क्या उन्हें लगेंगी ये भली
बातें जो निकलीं हैं मेरे दिल से
क्या इनसे दिल जुड़ेंगे
क्या मेरे ये लब्ज़ किसी की
आंखों की नमी में घुलेंगे
किसी के लबों पे मुस्कान
बन खिलेंगे....???
कभी फूल से लगेंगे
कभी शूल से चुभेंगे
बताओ जरा मेरी बातें सुनकर
लोग क्या कहेंगे??
सबकी सुनी है अबतक,
आज अपनी भी सुना आती हूं
- निरूपा कुमारी
कोलकाता, पश्चिमी बंगाल