गौ के खुर की धूल,
गौ धूलि सुबह शाम मिलती,
गंगा की धवल धारा सी बहती!
साँझ की संझबाती,
अम्मा की याद दिलाती,
रात में लोरियाँ गाती,
चिपकाएँ अपनी छाती!
साँझ की संझबाती,
दुलहादीन की याद आती,
भाभी की श्रृंगार चोटी,
मूँग दरती माँ की छाती!
साँझ की संझबाती,
दादी दादी की याद आती,
हर गुनाह माफ करती,
फगुआ की घी चपाती!
साँझ की संझबाती,
खो रही है दिया बाती,
अम्मा करती आरती,
सभी को आशीष देती!!
- सतीशचन्द्र मिश्र "बब्बा"
चित्रकूट, उत्तर प्रदेश