परन्तु आश्रम पहुँच हुए वो सनाथ
फिर हम क्यों कहें अनाथ।
भावनामयी संसार में,
अनाथ कहने पर कोई तो नस दबाती होगी
उनको अनाथ कहने पर टीस तो ज़रूर उठती होगी
फिर हम क्यों कहें अनाथ।
माना कि नहीं मिला माँ का आँचल
परन्तु आया ने तो उन्हें किया सनाथ
फिर हम क्यों कहें अनाथ
जानती हूं प्रकृति ने किया उन्हें अनाथ
परन्तु आश्रम में सीख संस्कार हुए वो सनाथ
फिर हम क्यों कहें अनाथ।
माना कि पिता का वात्सल्य छूट गया
परन्तु आश्रम में प्रेम मिला
वो भी अनूठा धन है जनाब
क्योंकि जहाँ पहुंच बच्चे हुए सनाथ
फिर हम क्यों कहें अनाथ।।
मिंकी मोहिनी गुप्ता
पिनाहट, उत्तर प्रदेश