अनंत पथ

सृजन
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मुझे चलते रहना है,
न किसी के आगे-आगे
और न किसी के पीछे-पीछे,
केवल सभी के साथ-साथ

चलना है मुझे अनंत पथ पर!
नित चलते रहना है मुझे 

सूरज की रोशनी के साथ-साथ,
चांदनी को अपनी आंखों में समेटना है
दूब पर पड़ती ओस की बूंदों में पिघलना है,
चलना है मुझे उस अनंत पथ पर!

चलते रहना है अपनी गली
और अपने मोहल्ले की ओर,
अपने घर,बाग-बगीचे और दालान में,
पड़ोस का भी हाल-चाल लेना है
मुझे सदैव चलते रहना है अनंत पथ पर!

बड़बस बीत गए हैं कितने सावन,
कोयल के कूकने की आवाज
भी तो रीत गई है ज़रा देखो तो,
पेड़ों की शाखाओं पर लगे हैं घोंसले
मुझे उनके पास तक पहुंचना है!

चिड़ियों के बच्चों को निहारना है!
उन्हें कुछ खाने की सहूलियत देना है
उनकी चीं-चीं की आवाज को भी सुनना है,
मुझे चलते ही रहना है उस अनंत पथ पर!

उस नदी के तट पर स्थित बालूका में
एक सुंदर घोंसले को भी तो बनाना है,
उसे पत्ते की हरी टहनी से सजाना है
मुझे चलते रहना है अनंत पथ पर!

कभी बैठे रहे चुपके से छुपकर
निरंतर आवाजाही से थक कर,

सुरमई चांदनी की रोशनी में घुलकर
फिर किसी नए ठौर की चाहत में,
अनगिनत आंगनों को पार कर के!

द्वार पर किसी अनजान पगडंडी को
पकड़कर किनारे-किनारे से आगे बढ़ना है,
मुझे तो चलते रहना है जहाँ से कोई सड़क
निकलती हो सरसों की पीली खेत की सीध में,
फसलों की लहलहाती हरियाली में रंग-बिरंगी!

तितलियों के पीछे भागते बच्चों सी ख़ुशी
मुझे तो उस पथ की ओर चलना है निरंतर,
जिसके साथ-साथ चलती हो एक पगडंडी भी
जहां बरसाती मेंढकों की होती टर्र -टर्र आवाज
और बच्चे भागते रहते खुश होकर चिल्लाकर!

उस अनंत पथ का गामी बनना है मुझे!
जहां पर हो शांति और सौहार्द्र का मिलन,
आकांक्षाओं की पोटली को समेटना है अब!
भय-रहित होकर चलते चले अब मेरे ये कदम,
मुझे तो चलते रहना है सदैव अनंत पथ पर!!

- डॉ सुषमा तिवारी

गौतमबुद्धनगर, उत्तर प्रदेश 


 

 

 

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