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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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गुरुवार, 11 मार्च 2021

उठना होगा ख़ुद तुम्हें

 तुम वेदना नही,संवेदना की हो अधिकारी

विश्व जननी माँ दुर्गा की छवि जैसी हो निराली

तेरा आँचल तेरी खुशबू जो अनमोल ताक़त है तुम्हारी

तेरा ममत्व उस ख़ुदा की नेक इबादत हम सब पर भारी

          उठना होगा ख़ुद तुम्हें, लड़ना होगा खुद तुम्हें !

 

मत रोवो,मत लाचार,बेवस, बेचारी बनो

ज़ख्म दिखाकर मत अपने अपमान की पुजारी बनो

आओ स्त्री ! इस जग में दिग्गज़ हुंकार करो

अपने नभ में सुंदर स्वर का अपना सुंदर गान भरो

          उठना होगा ख़ुद तुम्हें, लड़ना होगा ख़ुद तुम्हें !

 

स्वतन्त्रता तुम्हारी अभिन्न विजय गर्जना

इसको तुम निर्भयता से स्वीकार्य करो

तोड़ फ़ेक जंजीरे आडम्बर और पीड़ाओं की

फ़िर चाहे क्यों ना बनी हो वो स्वर्ण या हिराओं की

          उठना होगा ख़ुद तुम्हें, लड़ना होगा खुद तुम्हें !

 

ख़ुद को अबला नही सबला जैसी माँ धरा समझ

अपने ममता, प्रेम, धैर्य को नियति की सुंदर कला समझ

नन्ही-मुंन्ही हथेलियों को तूने ही चलना सिखाया

अपने तन के खून और दूध से इस जग को जिलाया

          उठना होगा ख़ुद तुम्हे,लड़ना होगा ख़ुद तुम्हें !


याद रख ऐ स्त्री !

यह समाज तुम्हारे बढ़ते बुलन्दियों को रौदने के लिए

मीठे-मीठे जाल बनेगा

तुम्हारे अपनों के घावों पर नमक भी मलेगा

तुम्हारे आज़ाद ख़यालों को कुतरने के लिए कैंची भी गढ़ेगा

          उठना होगा ख़ुद तुम्हें, लड़ना होगा ख़ुद तुम्हें !

 

आज समाज की हवाओं  का भी रुख़ भी कुछ यूं हो चला है

जहां बन बैठी नारी ही नारी की बलां है

ओह! रे संवेदना ऐसे कैसे बनाएगी तू जीत की सुंदर कहानी

एकता, विश्वास की पहले धधकती मशाल तो जला

          उठना होगा ख़ुद तुम्हें, लड़ना होगा ख़ुद तुम्हें !

 

अपने आसमान में अपनी एक चादर बिछा

सारे जहांन में अपने कारवां का अस्तित्व बना

काफ़िला बनता जाएगा ख़ुद, तू पहला कदम तो बढ़ा

रच इतिहास नया ,आँखों में कुछ ऐसी चमक बढ़ा

          उठना होगा ख़ुद तुम्हें, लड़ना होगा ख़ुद तुम्हे !

 

यह समाज नाम लेगा अपाला, लोपा,घोषा, मुद्रा का

देगा तसल्ली कल्पना ,सुनीता, प्रतिभा का

लेकिन यह सफ़र तुम्हें तब तक रखना होगा जारी

जब हो नही जाती आधी आवादी की हक़दारी

          उठना होगा ख़ुद तुम्हें, लड़ना होगा ख़ुद तुम्हें !


ओह ! कभी पीड़ाओं ने तुझे बेरहमी से तोड़ा होगा

तो कभी अभावों ने तेरा रास्ता मोड़ा होगा

पर याद रख ऐ स्त्री ! तेरा भगवान भी तेरे साथ खड़ा होगा

तू देख तो सही आवाज के फ़ेरी की एक कड़ी तो बना

          उठना होगा ख़ुद तुम्हें, लड़ना होगा ख़ुद तुम्हें !

 

उग्रता भी हुई होगी कभी तुमपे भारी

बनी होवोगी कभी तुम दुर्गा,चंडी,माँ काली

ओह! यह समाज भी कहा होगा तुमको कुल्टा जैसी नारी

तुम्हारा सर्वस्व लूटने को हवाएं भी हुई होगी आतुर

          उठना होगा ख़ुद तुम्हें, लड़ना होगा ख़ुद तुम्हें !

 

मत बना अपनी कमजोरी किसी भी ऐसी चीज को

जो दे जाए तुम्हें वेदनाएं ढ़ेर सारी

रिश्तों में भी मूल्यों का कोई मोल नही होता

फ़िर क्यों?तुम हर जगह अपनी इच्छाएं मारी

          उठना होगा ख़ुद तुम्हें, लड़ना होगा ख़ुद तुम्हें !

 

ईश्वर ने तुम्हें विवेक दिया, शक्ति दी,धैर्यता जैसी भक्ति दी

फ़िर क्यों ? तूने लाचारी की व्यथा गढ़ी इतनी ढ़ेर सारी

एक के बाद एक आवाज़ उठाओं ताकि

ना बने अब कोई निर्भया, प्रियंका हालातों की मारी

          उठना होगा खुद तुम्हें, लड़ना होगा ख़ुद तुम्हें !


हो सकता है कुंती,याज्ञसेनी द्रौपदी भी आए तेरे मार्ग

कहा जाए उन्हें महाभारत कराने वाली कुलक्षणा की खान

वो नासमझ क्या जाने त्याग, समर्पण,बलिदान का मान

जो धर्म-अधर्म के युद्ध को दे डाला कलह युद्ध का नाम

          उठना होगा ख़ुद तुम्हे,लड़ना होगा ख़ुद तुम्हें !

 

              - सुजाता सिंह

भदोही, उत्तर प्रदेश 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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