समेटने लगते हैं
धरती पर बिछी अपनी किरणें
विदेश यात्रा पर निकलने के लिए
तब
सतह से सीढ़ियां चढ़नी
शुरु कर देती है
रात-रानी
बंद होने लगते हैं कमलदल
और अलि दिग्भ्रमित...
नीड़ों में सिमटने लगती है
पक्षियों की चह- चहाट
उलझनें लगती हैं आपस में
शिशुओं की
क्लांत पुतलियां और
टूटने लगता है
काम से थके -हारे मनुष्य का शरीर
तब...
परम्परानुसार वरिष्ठ होने के कारण
जाता हूँ उन्हें छोड़ने
जलाशय तक
उन्होंने चूम लिया है मेरा माथा
सागर तट से
और मैं;
रजत से स्वर्णाभ...
कभी आना देखने
तुम भी
कौसानी का सूर्यास्त...
मोती प्रसाद साहू
अल्मोड़ा, उत्तर प्रदेश