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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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गुरुवार, 11 मार्च 2021

कौसानी का सूर्यास्त

जब भगवान भास्कर

समेटने लगते हैं

धरती पर बिछी अपनी किरणें

विदेश यात्रा पर निकलने के लिए

 

तब

सतह से सीढ़ियां चढ़नी

शुरु कर देती है

रात-रानी

 

बंद होने लगते हैं कमलदल

और अलि दिग्भ्रमित...

 

नीड़ों में सिमटने लगती है

पक्षियों की चह- चहाट  

 

उलझनें लगती हैं आपस में

शिशुओं की

क्लांत पुतलियां और

 

टूटने लगता है

काम से थके -हारे मनुष्य का शरीर

तब...

परम्परानुसार वरिष्ठ होने के कारण

जाता हूँ उन्हें छोड़ने

जलाशय तक

उन्होंने चूम लिया है मेरा माथा 

सागर तट से

 

और मैं;

रजत से स्वर्णाभ...

 

कभी आना देखने

तुम भी

कौसानी का सूर्यास्त...

मोती प्रसाद साहू

अल्मोड़ा, उत्तर प्रदेश 

 

 

 

 

 

 

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