हैवान का तूने रुप पाया,
बम गोलियों से,
लाशों का ढेर लगाया,
कितनों के आंसूओं
और कितनों की बद्दुआओं से
तूने अपना घर भराया,
वाह! आतंकवादी तूने कितना कमाया।
तेरे आतंक ने तुझ पर,
आतंकवादी का ठप्पा लगाया,
हर कोई तुझसे डरे,
तूने वो मुकाम बनाया,
तूने कभी ध्यान नहीं दिया,
किसका सहारा छीना,
किसका छीना साया,
वाह आतंकवादी तूने कितना कमाया।
-अंकिता जैन ‘अवनि’
अशोकनगर, मध्य प्रदेश