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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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गुरुवार, 11 मार्च 2021

क्षण क्षण प्रेरित होता हूँ मैं

              


    

 क्षण क्षण प्रेरित होता हूँ मैं,क्षण गिरता में धरती पर|

 कभी उड़ू  में स्वच्छंद गगन में,  कभी चलता अर्थी पर।

         कठिन पहाड़ सा लक्ष्य सोचकर, कभी हताश हो जाता हूं|

         कभी मायूसी का राग अलापता,  कभी प्रेरणा गीत गाता हूं।

 क्या हस्त मेरे बलहीन है, या भाग्य सोया शत्रु के द्वारे|

 पर ईश्वरीय विश्वास कहता, बगैर प्रयत्न यहाँ  कौन है हारे।

         सुनता हूँ मैं वह प्रतिध्वनी, जो लक्ष्य से टकराती है|

         कभी देखता स्वप्न सुहाना, सफलता जयमाला लिए आती है।

 क्षण क्षण प्रेरित होता हूँ मैं,कभी टूटता क्षण धागे सा|

 कभी चलता हो "राजा भोज", कभी भटकता अभागे सा।

         दिखा रही" माता" मेरी, सफलता की राह जो वहां जाती है|

         जाओ ऐ ! चिराग मेरे, देखो विजय की गंध यहां आती है।

 अब धैर्य मुझे बांधना हैं, तरकस संभाल शीघ्र दौड़ना होगा|

 क्या होगा वह विजय, जिसने धरा पर सहस्त्र सुख भोगा।

        अब आंखें मेरी धुंधलाती है, पर प्रकाश तो लक्ष्य का दिखता है|

         जिसे स्वयं की कद्र नहीं यहाँ ,कौड़ी के भाव वह  बिकता है।

 हां क्षण क्षण प्रेरित होता हूं, पर अब न गिरूंगा धरती पर|

 होगी विजय, हाँ !होगी विजय, नहीं चलूँगा अब अर्थी पर ।


सुरेन्द्र सिंह रावत

अजमेर, राजस्थान 

 

 

 

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