क्षण क्षण प्रेरित होता हूँ मैं,क्षण गिरता में धरती पर|
कभी उड़ू में स्वच्छंद गगन में, कभी चलता अर्थी पर।
कठिन पहाड़ सा लक्ष्य सोचकर, कभी हताश हो जाता हूं|
कभी मायूसी का राग अलापता, कभी प्रेरणा गीत गाता हूं।
क्या हस्त मेरे बलहीन है, या भाग्य सोया शत्रु के द्वारे|
पर ईश्वरीय विश्वास कहता, बगैर प्रयत्न यहाँ कौन है हारे।
सुनता हूँ मैं वह प्रतिध्वनी, जो लक्ष्य से टकराती है|
कभी देखता स्वप्न सुहाना, सफलता जयमाला लिए आती है।
क्षण क्षण प्रेरित होता हूँ मैं,कभी टूटता क्षण धागे सा|
कभी चलता हो "राजा भोज", कभी भटकता अभागे सा।
दिखा रही" माता" मेरी, सफलता की राह जो वहां जाती है|
जाओ ऐ ! चिराग मेरे, देखो विजय की गंध यहां आती है।
अब धैर्य मुझे बांधना हैं, तरकस संभाल शीघ्र दौड़ना होगा|
क्या होगा वह विजय, जिसने धरा पर सहस्त्र सुख भोगा।
अब आंखें मेरी धुंधलाती है, पर प्रकाश तो लक्ष्य का दिखता है|
जिसे स्वयं की कद्र नहीं यहाँ ,कौड़ी के भाव वह बिकता है।
हां क्षण क्षण प्रेरित होता हूं, पर अब न गिरूंगा धरती पर|
होगी विजय, हाँ !होगी विजय, नहीं चलूँगा अब अर्थी पर ।
सुरेन्द्र सिंह रावत
अजमेर, राजस्थान