बचपन की लोरी और दुलार है , हिन्दी ...
एक माँ का मातृत्व और प्यार है , हिन्दी ...
कभी भारतेंदु "बाबुजी" की आधुनिकता में, झलकती हुई ...
कभी "महादेवी " जी का काव्य श्रीँगार है , हिन्दी ....
कभी विद्यालय की प्रार्थनाओं में दिख जाती है ,
कभी अक्षर वर्णमाला की शोभा बढ़ाती है ,
कभी रस , छन्द और कभी अलंकार में सुशोभित हो ,
किसी लेखक की लेखनी बन जाती है ....
कभी किसी कवि के मनोभावों को शब्द देकर ,
कोरे श्वेत कागज पे उकेर आती है ....
रचना को एक सास्वत स्वरूप में रूपान्तरित करके ,
उस कवि की स्वलिखित "कविता " हो जाती है ....
कभी निबंध ,कभी सुलेख और कभी आलेख होती है ,
कभी उपन्यास और कभी कहानी वाला लेख होती है ,
कभी किसी पध्यांश की विस्तृत व्याख्या करती हुई ,
कभी कोई पुरातन सा अभिलेख होती है ...
संस्कृति और संस्कार का , आधार है हिन्दी ....
बचपन की लोरी और दुलार है , हिन्दी ................
- कृष्णा गुजराती
वाराणसी, गुजरात