अब स्वीकार नहीं

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दायित्वों से प्रतिकार नही

किन्तु बंधन अब स्वीकार नहीं

 

स्वामी हूं स्वयं की  मैं

मुझपर किसी का इख्तियार नहीं

 

मर्यादाओं से इन्कार नहीं

किन्तु बेडिया अब स्वीकार नहीं

 

ऐसा नहीं कि प्यारा  मुझे  अब  परिवार नहीं

किन्तु मेरा कार्य क्षेत्र  सिर्फ घर द्वार नहीं

 

निज स्वाभिमान की  रक्षा हेतु

अब किसी कृष्ण का इंतज़ार नहीं

 

लांछित करना है गर बड़े शौक से कर लो तुम

अग्निपरीक्षा देना मुझको  हर बार नहीं

 

मेरे परिश्रम का  यदि कोई भुगतान नहीं

तो फिर भरन पोषण भी मेरा कोई उपकार नहीं

 

बहुत लंबी व्यथा कथा मेरी

लेकिन यह आरम्भ है उपसंहार नही

-प्रज्ञा पाण्डेय

वापी, गुजरात 

 

 

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