अब तक ना खुला कलिंग- द्वार।
सुन चला मतवाले हाथी- सा,
क्रोधित होकर मगध सम्राट।।
। १।
सामने खड़ी पद्मा की सेना,
नारी या रण चंडी अवतार।
युद्ध के लिए ललकार रही,
बुझाले अपनी रक्त की प्यास।।
।२।
नारी पर शस्त्र उठाना,
है राज धर्म के खिलाफ।
हे कलिंग महाराज सुकन्या!
मैं ना करता नारी पर वार।।
। ३।
निरपराधियों की हत्या का,
क्या आज्ञा देता है धर्मशास्त्र?
सिर झुका अब क्यों खड़े हो?
उठाओ हम पर भी औजार।।
।४।
बज रहे हैं ढोल नगाड़े,
कलिंग विजय के देख नज़ारे।
हो गए न तेरे स्वप्न साकार!
किन्तु जीत कर भी गया तू हार।।
।५।
हुई है धरती लहू- लुहान।
मन भर देख रुधिर कीच,
पांव तले मानव मर्दित।।
। ६।
छाया है मौर्यालोक में मातम,
पूछेंगे कई सवाल परिजन।
कहां है आंखों का आलोक,
क्या बोलेगा सम्राट अशोक?
। ७।
टूटेगी हांथो की चूड़ियां,
मिटेगा मांग का सिंदूर।
माताओं की गोद सुनी कर,
असमय हुए अनाथ मुकुल।।
। ८।
देख ले आंखों से परिणाम,
हुई है धरती लहू- लुहान।
मन भर देख रुधिर कीच,
पांव तले मानव मर्दित।।
। ६।
छाया है मौर्यालोक में मातम,
पूछेंगे कई सवाल परिजन।
कहां है आंखों का आलोक,
क्या बोलेगा सम्राट अशोक?
। ७।
टूटेगी हांथो की चूड़ियां,
मिटेगा मांग का सिंदूर।
माताओं की गोद सुनी कर,
असमय हुए अनाथ मुकुल।।
। ८।
क्यों कर रहा अब संताप?
कलिंग विजय दिवस है आज,
कर लिया ना साम्राज्य विस्तार!
। ९।
पटी हुई लाशों से धरती,
नोच रहे हैं श्वान- शकुन।
असहनीय दर्द कराह के,
श्रव्य भी न हैं स्वर करुण।।
।१०।
शर्माकर छिप गया रवि भी,
मौन हो गया है आकाश।
विधु भी स्तब्ध खड़ा है,
छिपा रही चांदनी प्रकाश।।
। ११।
युद्ध की विभीषिका देख,
थर्रा उठा घरती ब्राह्मण।
यम नृत्य तांडव शिथिल ,
हृदय विदारक युद्ध परिणाम।।
।१२।
कराह चीत्कार अधीर पुकार,
नदी सा बहता रक्तस्राव।
कानों में गूंज रही आवाज़,
क्या सुन रहे हो तुम नृपाल?
।१३।
भावुक हुए हृदय उद्भ्रांत।
नैनों से बह रहे अंबु,
कैसी यह वेदना अथाह?
।१४।
अब नहीं साम्राज्य तृषा,
ना युद्ध विजय की तिशा।
किए हैं कितने अपराध,
कर रहा अशोक परिताप।।
।१५।
युद्ध पश्चात् कुरुक्षेत्र में,
पसरा हुआ सन्नाटा था।
जीत कर भी हारा बैठा,
नया कलिंग का राजा था।।
।१६।
व्याकुल मन शांत करने,
पहुंचा बुद्ध की शरण में।
त्याग कर राजसी ठाठ बाट,
अपनाया शांति का मार्ग।।
।१७।
एस धम्मो सनंतनो
बुद्धम शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि
संघं शरणं गच्छामि
।१८।
-स्वाति सौरभ
भोजपुर, बिहार