इस वर्ष तो तूने कर दिया कमाल ।।
खून पसीने की कमाई को ।
उड़ाने में पल भर नही लगाती।।
चला ख़ंजर अपने आतंक का ।
सीने में हो तुम चुभाति ।।
खाकर टैक्स और जी एस टी ।
डुबाती जीवन की सबके कश्ती।।
क्यों करती हो अत्याचार बरबस।
तान मंहगाई का बाण तरकस ।।
हाय रे मंहगाई कैसी आफत ढाई ।
इंसा के जीवन को कर दिया दुखदाई।।
खा खा कर होती जा रही हो मोटी।
फिगर की क्यों नही करती कटौती।।
जरा रखों खूबसूरती का ख़्याल ।
बेख़ौफ़ न चलो तुम अपनी चाल।।
इतरा रही अब तो रोटी दाल ।
जुल्म ढाह रही तुम बेमिसाल।।
गरीब और मध्यम वर्ग भी बेहाल ।
न कह पा रहे वो अब अपना हाल ।।
अब इस वर्ष तू हो जा विदा ।
नही यहाँ कोई तुझ पर फिदा ।।
कानपुर, उत्तर प्रदेश