दिव्या प्रतिवर्ष होली और दीवाली पर ही गाँव में आती थी दिया जलाने के लिए। महानगर में पली हुई दिव्या कोएक रात भी काटना मुश्किल होता। इस बार एक रात को आई दिव्या लोकडाउन के कारण जब गांव में ही फँस गई तो उसके पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई।गांव में देवर देवरानी के साथ ही सास ससुर रहते थे।
सिर पर पल्लू और सास का कडक स्वभाव।पासपडौस की चाची ताई आने लगी मिलने के लिए। "बहू तू चिंता ना करयो, यहाँ पे तो तेरा खूब ध्यान रखेंगे सब,किसी भी चीज की जरूरत हो तो अपना
समझ के कह दियो ।"अपनेपन में कही बातें सुनकर भी दिव्या को रोना आ गया।
रहना तो पडेगा ही, क्यों न कुछ आनंद के पलही ढूँढ लिए जाए।रसोई के पास से गुजरते हुए अपनी सास की आवाज़ सुनी-"छोटी बहू, बडी बहू शहर में पली बढ़ी है,उसे गाँव में रहने का नहीं पता, ध्यान रखियो उसे कोई दिक्कत ना हो।" "जी माँजी, मैं पूरा ख्याल रखूंगी जीजी का।" देवरानी का भी प्यार भरा उत्तर सुनकर दिव्या आत्मविभोर हो गई। सबको हेय दृष्टि से देखने वाली आज अपने आप को छोटा महसूस कर रही थी।
शाम को पडौस की चाची आई और आम का खट्टा मीठा अचार देकर बोली-"ले बहू, आज रोटी के साथ यह अचार खाना, खाने में स्वाद आ जाएगा।"वास्तव मे में शहर के बाजार से लाए अचार में यह स्वाद ही नहीं था, शायद प्यार की मिठास नहीं थी उनमें।कभी पडौस की ताई तो कभी दादी सबके हाथ से बना हुआ स्वाद ले रही थी दिव्या। यह प्यार ऐसी निश्छलता! जैसे वह उनसबके घर की बहू ही हो। छोटे बच्चें चाची-चाची कहकर आगे पीछे घूमते रहते।
घर में काफी जगह थी जिसमें बहुत ही सुंदर तरीक़े से किचन गार्डन तैयार किया हुआ है। रोज ताजी सब्जियां तोडी जाती और बनाई जाती।घर के आँगन में नीम आम आँवला, बेल,अमरूद के पेड़ लहराते हुए आँखों को सुकून देते। कोयल का कूकना तो हृदय को आच्छादित कर देता।ग्रामीण परिवेश को हमेशा ही उसने पिछड़े हुए क्षेत्र की दृष्टि से देखा था जहाँ पर प्रसन्न रहने के लिए कुछ भी नहीं था, परन्तु इस लोकडाउन ने मानसिकता को एकदम बदल दिया।ताजा दूध मट्ठा पैकिट में आए दूध से कितना स्वादिष्ट?
आज वैसा ही ग्रामीण और शहरी जीवन मेंअन्तर दिखाई दे रहा है।गाय भैंसों के रंभाने की आवाज शहरी परिवहन से कितनी मधुर लग रही है।
कुछ सार्थक करने के लिए आस पड़ोस के बच्चों को लैपटॉप चलाना सिखाने का निर्णय लिया।दस बच्चें फटाफट तैयार हो गए। उनके हाथ पैर अच्छी तरह से धुलवाकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सिखाना शुरू किया तो आशातीत परिणाम निकला और बच्चें मन लगाकर लैपटॉप चलाना सीखने लगे।गांव की सभी औरतें दिव्या को दुआएँ देती। आश्चर्य तो तब हुआ जब कुछ औरतें भी लैपटॉप सीखने में दिलचस्पी लेने लगी।पति रोहित भी दिव्या का यह रूप देख अत्यधिक प्रसन्न थे।गांव जाने के नाम पर भी चिढने वाली दिव्या सबकी लैपटॉप दीदी बनी हुई थी।
-अलका शर्मा