अनपढ़

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यदि मैं पढ़ लेता थोड़ा ज्यादा

नौकरी का बना रहता इरादा

अफसर बन छोटा-सा प्यादा

कम पढ़ा और बन गये दादा

किया जो उलटा सीधा वादा


चोला देख समझते रहे बाबा

पहुंचकर काशी, कभी काबा

ताबड़तोड़ खोलके कई ढाबा

उकसा के थोड़ा खून खराबा

बटोर लाया दौलत का झाबा


तबियत मचलती हुई गुलाबी

ठाठ बाट होती जाती नवाबी

झरना बहे जो निरंतर शराबी

जुड़ते देर कहां पंगत कबाबी

नहीं दिखाई दे थोड़ी खराबी


चुपके बोझ चमचों पर लादा

नहीं फर्क किया नर या मादा

प्रत्यक्ष रूप रखूं सीधा सादा

बनते स्वेच्छा से सभी प्यादा

किया जो उलटा सीधा वादा

                                            डॉ० संजीव चौधरी

जयपुर, राजस्थान 

 

 

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