उगने लगे नव स्वपन त्यूँ -त्यूँ
फैलाने लगे नन्हें अपने अरमान
ढूंढ़ने लगे तब नया आसमां
सच है घर तब से बसेरा ना रहा ।।
भीतर ही जब भाव ना हो
अंतस की गर्माहट लुप्त हो
मन में खिची दीवार जब हो
बातों में तकरार जागे पल पल
साँसो में घुटन बढे़ जब तब
सच है घर तब से बसेरा ना रहा।।
मौन फैले हर दिशा में
क्रूरता दिखे ममता में
अबोले शब्दों की भरमार हो
दृष्टि में भी घृणा पनपे हर बार
जुबां पर कड़वाहट बसे
सच है घर तब से बसेरा ना रहा।।
. खून के रिश्तों में धार दिखे
आपसी बातें भी व्यापार लगें।
छोटे मुद्दे जंग बने जब
आँखो की हया हटे जब
चेहरे की नरमाई लुप्त हो
सच है घर तब से बसेरा ना रहा।।
बड़ों का मान घटे जब
बातों में तूफान झलके पल पल
संबंध भी बंधन लगे जब जब
घर की दीवारो दर ड़रे जब
हाथ ही हाथ को ना थामे जब
सच है घर तब से बसेरा ना रहा।।
ड़ा० नीना छिब्बर
जोधपुर, राजस्थान